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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 13 तेहथी त्रिभुवनि वाधी माम, तीर्थंकर पद बांध्यु ताम । तिहांथी चवीया दसमइ भवि, पुनरपि सुदगति इम योगवइ अच्युत देवलोकि बारमइ, बावीस सागर आय अनुक्रमई । सुरतणा तिहां भोगवइ भोग, पूरवकृत पुण्यनुं ए योग अग्यारमइ भवि ल्यइ अवतार, पुंडरगिणि महाविदेह मझार । वयरसेन चक्रवर्ति तिंहा थया, वयावच्च तणी ए मया बत्रीस सहिस मुगटधर राय, कोडि छिनुं सेवक नमइ पाय । चउसठि सहिस जस अंतेउरी, वीरांगना बिमणी सुंदरी लाख चुरासी मयगल मिल्या, लाख चुरासी हयवर भला । लाख चुरासी रथना धणी, ईत्यादिक ऋद्धि पामी घणी सुख संसारतणा विलसंत, इंणि परि चक्रधर राज करंत । अनित्य संसार मनि जाणी करी, भूपि चारित्र कमला वरी वीस स्थानक तप वीस वीस वार, तप जप संयम पालइ सार । अंति समय आराधन कीध, तिहांथी पहुता सर्वारथसिद्ध चउसठि मणनां मोती जिहां, काल न जातो जाणइ तिहां । लवसत्तमा सुर तेहनुं नाम, सुख संपूण तस अभिराम तेत्रीस सागर तेहनुं आय, तिंहाथी वलि चविआ सुरराय । जंबूद्वीप अनोपम ठाम, दक्षिण भरत तिहां अति अभिराम कोशल देश जिहां अवज्झापुरी, इंद्रि सुंदर रचना करी । कुलगर नाभि नरिंद सुजाण, जेहनी सघलइ वरती आण तास प्रियास शिवयणी सती, मरुदेवी राणी गुणवती । अंगि सोहइ शीयल शिणगार, अपत्सरा रूपि मनावइ हार सुंदर रूप मनोहर नारि, तस जामलि दूजी नही संसारी । निज प्रिउस्युं सुख विलसइ सती, दुःखनी वात न जाणइ रती भव तेरमइ तस उयरि मझारि, आषाढी वदि चउथि उदार । प्रथम तिर्थंकर जगदाधार, अवतर्या त्रिभुवन तारणहार For Private and Personal Use Only November-2018 ॥१२॥ ॥१३॥ ॥१४॥ ॥१५॥ ॥१६॥ ॥१७॥ ॥१८॥ ॥१९॥ 112011 ॥२१॥ 112211 ॥२३॥ 112811
SR No.525340
Book TitleShrutsagar 2018 11 Volume 05 Issue 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2018
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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