________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
12
नवम्बर-२०१८
॥१॥
॥२॥
||३||
||४||
श्रुतसागर
श्री संघविजय कृत
आदिजिन स्तवन GO॥ गणिश्री ५श्री गुणविजय परमगुरुभ्यो नमः।
॥हा॥ सरसति भग(व)ति भारती, कविजन केरी माय। अमृत वचन निज भगतनई, आपो करी पसाय शासनदेवी चित्ति धरु, प्रणमुं निज गुरु पाय । प्रथम तीर्थंकर वर्णवू, श्री रिसहेसर राय भव तेरह स्वामी तणा, हुं संक्षेपि भणोस (भणीस)। रचुं तवन रलीयामगुं, सफल जन्म करोस (करीस) जु सुरगुर मुखि अवतरइ, कोडि पूरवनुं आय। कोडि रसना जु मुखि हुई, तुहि गुण कह्या न जाय अनंत गुण जिनजी तणा, कहितो न लहुं पार । तु हिई मुज उलट थयो, थुणवा श्री नाभि मल्हार
॥ढाल चउपई राग रामगिरि ॥ पहिलइ भवि माहाविदेह मझार, सुगुणवंतनइ अति उदार। धनो नामि हुओ सारथवाह, जाणे पुण्य तणो परवाह दीधु मुनिनइ घृतनुं दान, तेहथी वाध्यो अधिको वान। भव बीजइ युगलीउं हवू, देवकुरु खेत्रि अभिनQ त्रीजई भवि अवतरीया देव, सुधर्मि देवलोकि देव। माहाविदेहइ माहाबल सोय, भव चउथइ नरपति ते होय ईशान देवलोकि ललतांग, देव हुआ भव पांचमइ चंग। वली माहाविदेहइ वज्रजंघ राय, छठ्ठइ भवि निज पूरी आय तिहांथी उत्तर कुरइ युगलीयुं, भव सातमइ अनोपम थयुं । देव(?) तणो भव आठमइ करइ, सुधर्मि देवलोकि अवतरइ हवइ नुमइ भवि गुणह निधान, हुआ वैद्य केशव राजान । कीधुं साधुं नइ बहु आशान, करी निरोग देहइ चडीओ वान
॥६॥
॥७॥
॥८॥
॥९॥
॥१०॥
॥११॥
For Private and Personal Use Only