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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुस्तक समीक्षा डॉ. कृपाशंकर शर्मा पुस्तक नाम : भारतीय पुरालिपि मञ्जूषा संपादक/लेखक : डॉ. उत्तमसिंह प्रकाशक : श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा पृष्ठसंख्या : २१६ प्रकाशनवर्ष : वि.सं. २०७२ (ई.स. २०१६) मूल्य : ३६०/विषय : भारतीय संस्कृति की पुरातन लिपिशास्त्र में से ब्राह्मी, शारदा, ग्रंथ व नागरी लिपि के अध्ययन-अभ्यास हेतु व लिपिप्रवेशिका रूप उपयोगी ग्रंथ. भारतीय पुरालिपि मंजूषा प्राच्यविद्या परंपरा में एक उपादेय ग्रंथ है। प्राच्यविद्या के आदिस्रोतों को अपने पुष्ट प्रमाणों के साथ अनुसंधाताओं और सुधी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना असाधारण ही नहीं अपितु दुरूहतर कार्य है। इसी असाधारण कार्य को उपादेय एवं बोधगम्य बनाने के उद्देश्य से प्राच्यविद्या के मार्मिक अध्ययनकर्ता डॉ. उत्तमसिंहजी ने प्रस्तुत ग्रंथ का प्रणयन किया है। वे कई वर्षों से भारतीय प्राचीन लिपियों के अध्ययन-अध्यापन कार्य में संलग्न हैं, जो सराहनीय है। प्रस्तुत पुस्तक उनके सुदीर्घ अनुभव और कठिन परिश्रम का सफल एवं सुखद परिणाम है। इसके प्रकाशन से भावी पीढ़ी को नई प्रेरणा के साथ-साथ उत्साहवर्धक जागरुकता एवं ज्ञानार्जन का सुनहरा अवसर प्राप्त होगा। ग्रंथ की विषयवस्तु को २१६ पृष्ठों में समाहित किया गया है। ग्रंथ का मुद्रण और वस्तुविन्यास पाठकों को सहज ही अपनी ओर आकृष्ट करता है। इस ग्रंथ के मुखपृष्ठ पर प्रस्तुत शिल्पाङ्कन का चित्र ग्रन्थ की विषयवस्तु को उद्घाटित करता है। ग्रंथनिर्माता डॉ. उत्तमसिंह ने इस ग्रंथ में लेखनकला के प्राचीन स्वरूप, उसके उद्भव व विकास को प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत किया है। जिसमें भारतीय सांस्कृतिक निधि और इतिहास के सशक्त स्रोत पाण्डुलिपियों का विस्तृत विवेचन किया गया है। For Private and Personal Use Only
SR No.525325
Book TitleShrutsagar 2017 08 Volume 04 Issue 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size9 MB
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