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अगस्त-२०१७
॥९॥ प्रेमे०
प्रेमे०॥१०॥
श्रुतसागर
संवत रसनवआठने एके(१८९६), आसो शुदिनी बीजे रे; पूजा उत्तम पूरण कीधी, राग महोत्सव रंगे लधु पोषधशालेस तपागण, आणंदसोमसूरिराया रे; तस पाटे श्रीउदयसूरि कहे, दिन दिन सुजस सवाया सूरति बिंदरे नवापरामां, राजसोमजी राजे रे; शांतिनाथ साहिब देहरामां, पूजा उत्सव काजे
॥ इति नवांगीपूजा संपूर्णम् ॥ सं० १८९६ना आसो शुदि २ स्वकृत लेख
॥ भद्रम् ॥
प्रेमे०॥११॥
प्राचीन साहित्य संशोधकों से अनुरोध श्रुतसागर के इस अंक के माध्यम से प. पू. गुरुभगवन्तों तथा अप्रकाशित कृतियों के ऊपर संशोधन, सम्पादन करनेवाले सभी विद्वानों से निवेदन है कि आप जिस अप्रकाशित कृति का संशोधन, सम्पादन कर रहे हैं या किसी पूर्वप्रकाशित कृति का संशोधनपूर्वक पुनः प्रकाशन कर रहे हैं अथवा महत्त्वपूर्ण कृति का | अनुवाद या नवसर्जन कर रहे हैं, तो कृपया उसकी सूचना हमें भिजवाएँ, इसे हम श्रुतसागर के माध्यम से सभी विद्वानों तक पहुँचाने का प्रयत्न करेंगे, जिससे समाज को यह ज्ञात हो सके कि किस कृति का सम्पादन कार्य कौन से विद्वान कर रहे हैं? यदि अन्य कोई विद्वान समान कृति पर कार्य कर रहे हों तो वे वैसा न कर अन्य महत्त्वपूर्ण कृतियों का सम्पादन कर सकेंगे.
निवेदक- सम्पादक (श्रुतसागर)
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