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॥१॥
॥१॥
SHRUTSAGAR
August-2017 हां रे धपमव मादल दूक्कडां' रे लाल, हां रे बजावो गावो घुमर घेर; प्यारे० हां रे लेख छट्ठी पूजा छट्ठी भालनी हो लाल, हां रे पूजोने उदये सूरज मेर ॥९॥ प्यारे० जिणस्स णाणीजगणायगस्स, जगप्पईवस्स य बोहगस्स। बुद्धस्स मुत्तस्स य वच्छलस्स, भिसिंचयामो उसहप्पहूस्स सुरपतैनपितं प्रभुपत्कजं, यदि युगेश युगादीश जन्मितः । यदि च राज्यपदे प्रभु संस्थितः, नतसुरेन्द्रनरेन्द्रपदाम्बुजम्
॥२॥
(इम कही कलश ढालवो) ॐ ह्रीं श्रीं परमपरमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशक्तये जन्म-जरा-मृत्युनिवारणाय [श्रीमज्जिनेन्द्राय] जलं चन्दनं' अक्षतं फल फूलं धूप दीपं नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ।
॥अथ पूजा सप्तम॥
॥दुहा॥ सोल पंहोर प्रभ देशना, कंठे अमृत तूल्य; मधुर वचन सुर नर सुणे, तिणे गले तिलक अमूल्य कायापुर गोपुर कह्यो, जीजिये जीव निवास; तिणे तिलक तिहां कीजिये, प्रभु कंठामृतवास
॥ ढाल ॥ भगति हृदयमां भावज्यो रे- ए देशी ॥ त्रिण गढमां बेसी प्रभुरे, ये भविने उपदेस; अखंड धुनि' ऊठे तिहां रे, समझे सुर तिरि सेस
॥१॥ हो जिनजी ! ऋषभ रमइया रामना रे, कंठकलित त्रिण ग्रामना रे, रागी वसि वीतराग चिहुं मुखे ब्रह्मा जिम भणे रे, बावो आदिम एह; वाणी जोजनगामिनी रे, गुण पांत्रीस ज्युं मेह
॥२॥ हो जिनजी० सेलडि साकर ध्रा(द्रा)खथी रे, मीठो साद-सवाद; रोमोद्गम सुणता लसे रे, भांजे भवि विखवाद
॥३॥ हो जिनजी० अब्धो विधो वलि वधु-मुखे' रे, अमृतवास अनृत्य; सरप मुखे वलि विबुधमां रे, अमृतवास असत्य
॥४॥ हो जिनजी० खार खंडित रंडित रत्य, विष-मरण विबुधने विपत्य; सहु माने सत्यासत्य, विण प्रभुजीने कंठे अमृत्य
॥५॥ हो जिनजी०
॥२॥
1. (?), 2. (?), 3. (?), 4. धरि, 5. मेघ, 6. चंद्र, 7. (?), 8. सांप.
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