SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर अगस्त-२०१७ दस चउ पुरुषाकारमा रे, ग्रीवा ग्रैवेक ठांम; सहु सरिखा तिहां इंम इहां रे, प्रभु-परखद अभिरांम ॥६॥ हो जिनजी० वेर मिटे वाणी सुण्यां रे, जोता सीह सारंग; ग्रीवा-निनाद गंभीर छे रे, रंग प्रभुजीने रंग ॥७॥ हो जिनजी० कंठ तिलक तिण कारणे रे, करीये भविजन भाव; गलग्रह' रोग गुदे नहीं रे, मुखे दुरगंध न दाव ॥८॥ हो जिनजी० वांसलि वीणा पिक-रवे रे, काने सुण्यां मिटे क्रोध; उदयसोमसूरि सुर-नरा रे, आणंदे लहे बोध ॥९॥ हो जिनजी० जिणस्स णाणीजगणायगस्स, जगप्पईवस्स य बोहगस्स। बुद्धस्स मुत्तस्सय वच्छलस्स, भिसिंचयामो उसहप्पहूस्स ॥१॥ सुरपतैनपितं प्रभुपत्कजं, यदि युगेश युगादीश जन्मितः । यदि च राज्यपदे प्रभु संस्थितः, नतसुरेन्द्रनरेन्द्रपदाम्बुजम् ॥२॥ (इम कही कलश ढालवो) ॐ ह्रीं श्रीं परमपरमात्मने अनन्तानन्तज्ञानशक्तये जन्म-जरा-मृत्युनिवारणाय [श्रीमज्जिनेन्द्राय] जलं चन्दनं अक्षतं फलं फूल धूपं दीपं नैवेद्यं यजामहे स्वाहा ।। ॥अथाष्टम पूजा॥ ॥ दुहा॥ पूजा उरनी आठमी, अष्ट सिद्धि आपंत; प्रभु हृदये पूजा कर्या, करम आठ कापंत ॥१॥ हृदयसरोस(ज ?)थी उपसम्या, बाल्या रागने रोस; ऋण पावकथी रहित छे, हृदयतिलक निरदोस ॥२॥ ॥ ढाल ॥नेक निजर करो नाथजी, तथा वेमलो रहेने वरणागिया- ए देशी॥ हवे आठमि पूजा प्रकासीये रे, लीधि आठमि गति अविनासीये वाल्हो ऋषभ हृदयमां वासीये जी रे ॥१॥ पूजो ऋषभजीने प्राणीया, जेहने सुर-नर-असुरे जाणीया जी रे (टेक) उरे प्रणव अक्षर धुरे थापीने रे, संगे मायाबीज समाने रे श्रीये सिद्धनुं ध्यान समावीने जी रे ॥२॥ पूजो० 1. एक रोगनु नाम, 2. (?). For Private and Personal Use Only
SR No.525325
Book TitleShrutsagar 2017 08 Volume 04 Issue 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy