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21
June-2017
॥१॥
॥२॥
SHRUTSAGAR
पडी वस्तु लाधइ जिको हुं०, अरथइ धरमनइ ठाणि रे; हुं० लेवइ देवइ जे वली हुं०, ते पणि जयणा जांण रे; हुं० ॥६॥ त्रीजुं० चोथों व्रत इम पालसुं हुं०, जाव जीव एक भांण; हुं० पूरपुरुष हुं भनुं नहीं रे हुं०, मनवचन जयणा मान रे हुं० ॥७॥ चोथु०
आ देश निरदेशथी हुं०, सज्जनवर्गनइ काम रे; हुं० इणि व्रतइ इम पालता हुं०, आपइ शिवपुर ठाम रे हुं० ॥८॥ चोधुं०
ढाळ- भगति जुगति सीधाई रे। ए देशी। इच्छा मति प्रमाणि रे, तेहवि संक्षेपइ, परिग्रहनो लेषु कहि ए; सहस एकसो एक रे, जवहर पणि तिम, तोला पंचास कनक कहुं ए मोती जडित तमाहि, तेह पण एकसो, घरमेडी पांच बंधा ए; भाडत घर पणि पांच रे, सर्वधान सहुं जाति सतपांच मोकलु ए धात कुट परिमाण रे, वीस माण लहुं गाय, बि वेला सहीती ए; भिसनै बाली ए करे, दासदासी पणि ते जीमे, घी मण पनर मोकलु ए ॥३॥ गोल-खांड मण पांच, साकर अधमण, वेस पंचास पोता तणा ए; कापडं गज पचास रे, वली घर वापरो, सर्व मली सत पांसइ ए छु(छ)ठु दिशव्रत जोय रे, दिस सघली कही, एकेकी दिशइ कहुं ए; दोढसो जोयण मान रे, वली नीचु उर्छ, दो-दो जोयण जाणीइं मोटां वाहण जेह रे, ते तो परिहरुं नाव-होडीया मोकली ए: एम सातमो भोग-परिभोग रे, तेह विचरूं, अभक्ष्य बावीसइ टालीइ ए वड-पिंपल-पीपर फल रे, कछंबर-उबर, मद्य-मांस-माखण वली ए; हेम करह विष रे, वली उषध विण, माटी फल अणजाणुं ए
॥७॥ रयणी भोजन मीठो रे, काचूंजाणीइ, घोलवडा बिगण सही ए; ब(व)ली अथाणुं जोय रे, पीलुपीचूअ, बोरस खस२ करी ए पंपोटा बहुं जीव, त्रिदिननो उदन, वासी विदल वली कहुं ए; रातै राध्यों धान रे, विजा दिननों, बासि पणि तिमज सही ए इणि परि कह्या अभक्ष्य, ते सवि वोसरुं, वली अनंतकाय परिहरु ए; हवि जे खावा लेवा तेहना नाम ज, गुरुमुखथी ते धरू ए
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