SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर जून-२०१७ __ ढाळ- नाहलीइ विलूधी उलंभा दीयइ रे। ए देशी। पहिलं समकित भविजन आदरोजी, सकल धर्म- मूल; दोष अढाररहित देवे आदरूंजी, अरिहंतदेव अनुकूल ॥३॥ पहि० पंच माहाव्रत पालइ प्रेमसुंजी, निरदूषण लीयइ आहार; धारइ गुण सत्तावीसइ साधनाजी, ते वंदं अणगार ॥४॥ पहि० धर्म जे सूधो भाख्यो केवलीजी, दया मूल गुणखांण; त्रिणइ तत्वइ सूधां सदहुंजी, एह प्रथम मंडाण ॥५॥ पहि० हरीहर इस्वर ब्रह्मा जे अछेरे, वली लोकोत्तर देव; कुगुरू कुदेव धर्म न आदरूजी, जो पाम्यो समिकित देव ॥६॥ पहि० मुंकुं दोकडा दश देहरासरजी, नाण लखावण पंच; जीव छोडावण पंच जपणि, लह्याजी वर्ष२ प्रति संच ॥७॥ पहि० पूजा एक सतर भेदी कहीजी, वरस प्रति गुणखांणि; नोकरवाली एक दिन प्रति गणुंजी, नित दोइ करूं पचखांण(णि) ॥८॥ पहि० सूर उगमतइ करूं नोकारसीजी, संध्याइ दुवीहार; छतइ योगइ गुरुनइ वादीयइजी, ए समकित विवहार ॥९॥ पहि० देहरइ दश आशातन टालीइजी, पालिइ सिर जिण आंण; ए समकित मूल पहिलो कांजी, सुखविजइ चट(ढ)तइ भांण ॥१०॥ पहि० ___ ढाळ- हुं वारी लाल ए देशी। पहिलं व्रत इम पालीयइ हुं वारी लाल, प्राणातिपात जस नाम रे; हुं० तरस जीव हणों नही हुं०, निरापराधइ न काम रे हुं० ॥१॥ पहि० उषध वेषधइ कारणइ हुं०, सजनादिकनइ काम रे; हुं० शरीरइ जे जीव उपजई हुं०, तेहनों जयणा ठाम रे हुं० ॥२॥ पहि० मृषावाद बीजुं का, ते मन सुद्धइ पालि रे; हुं० जूठां पांच जे मोटिकां हुं०, तेहना पांच अतिचार टालि रे; हुं० ॥३॥ बीजुं० कन्या गो भूमि थापणि हुं०, कुडी शाखिम देअरे; हुं० बीजी जयणा बोलवइ हुं०, दाखिण जयणा एह रे; हुं० ॥४॥ बीजुं० त्रीजा अदत्तादाननुं हुं०, करीयै हिव पचखाण रे; हुं० मोटकी चोरी न कीजीइ हुं०, जेहथी राजदंड जाणि रे हुं० ॥५॥ त्रीजुं० For Private and Personal Use Only
SR No.525323
Book TitleShrutsagar 2017 05 Volume 04 Issue 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy