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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR February-2017 अध्यात्मज्ञान ज सत्य होवाथी तेनो दुनियामां स्थायीभाव होय छे. अध्यात्मज्ञान पोतानां बळथी मिथ्याविद्याने हठाववा समर्थ थाय छे. अध्यात्मज्ञान पोताना सामर्थ्य वडे कर्मोनो नाश करवा माटे समर्थ बने छे. अध्यात्मज्ञान- माहात्म्य ते ज्ञानने जे पामे छे ते ज समजी शके छे. आशा तृष्णाना बीजोनो नाश करवो होय तो अध्यात्मज्ञाननी सेवना करवी जोईए. अध्यात्मज्ञान पामीने अंतरमां समजवू जोईए के बाह्य विषयो जुठा छे. बाह्यनां करवा योग्य कार्योना अधिकार प्रमाणे करवा जोईए; एम जो न करवामां आवे तो अध्यात्मज्ञानथी पण उपाधि टळती नथी अने दुनियाना व्यवहारमा पण युवराज भद्रककुमारनी जेम बळ प्राप्त थतुं नथी. युवराज श्री भद्रककुमारचं दृष्टांत एक नगरीमां सुधन्वा नामनो एक नृपति राज्य करतो हतो. तेने एक सुमती नामनी पुत्री हती अने एक भद्रक नामनो पुत्र हतो. सुधन्य राजाने पुत्र अने पुत्री उपर अत्यंत प्रीति हती. तेणे भद्रक पुत्रने उपाध्याय पासे बहोतेर कळानो अभ्यास कराव्यो. सुमती पुत्रीने चोसठ कळानो अभ्यास कराव्यो. सुमति पुत्री वेदान्त ज्ञाननो अभ्यास करवा लागी. एक महात्मा तेना बागमां उतर्या हता. तेनी पासे सुमती दररोज ब्रह्मज्ञाननी चर्चा करवा जती हती. समतीने ब्रह्मचर्चथी घणो आनंद मळतो हतो. एक दिवस भद्रक राजपुत्र पण सुमतीनी छिद्रान्वेषणा करतो ते ज्ञानचर्चा सांभळवा लाग्यो. भद्रकने प्रतिदिन चर्चामा रस पडवा लाग्यो घणां दिवसे भद्रक ब्रह्मज्ञानमां प्रविण थयो. ते व्यवहारकुशळ न होवाथी महात्मानां आपेलां ब्रह्मोपदेशनी दृष्टिने व्यवहार कार्यमां पण आगळ करवा लाग्यो, अर्थात् व्यवहार कार्यमां पण ब्रह्मज्ञाननी वार्ताओ करवा लाग्यो. एक दिवस राजाए सभा भरीने युवराजनी पदवी उपर स्थाप्यो अने का के, हे राजपुत्र ! तुं हवे सर्व राज्यनी अने लश्करनी संभाळ राख. त्यारे भद्रके भद्रकताने आगळ धरीने का के, राज्य के राजा अथवा सैन्य सर्वे असत् छे, ब्रह्म सत्य छे अने माया असत् छे. हुं पण नथी अने तुं पण नथी. युवराज नथी ने राजा पण नथी, माटे असत् नो व्यवहार केम करवो जोईए ? राजाए का के, हे पुत्र ! आवी गांडी गांडी वातो न कर, तुं हवे युवराज पदवीनी शोभाने सारी रीते वधार ! के जेथी आगळ उपर तुं राजानो राजा बनवाने अधिकारी बनी शके. राजानां उपर्युक्त वचनो सांभळीने युवराज बोल्यो के, हे राजन् ! तमे असत् मायाने सत् मानीने गांडी गांडी वातो करो छो, जे वस्तु ज नथी तेने सत् मानीने मूर्ख बनो छो, अर्थात् तेथी तमो भ्रान्त थइ गया छो. For Private and Personal Use Only
SR No.525319
Book TitleShrutsagar 2017 02 Volume 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size11 MB
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