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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अध्यात्मज्ञानगंगाना ओवास्थी... आचार्यश्री बुद्धिसागरसूरिजी परमतारक विभु श्री वीरप्रभुनी अध्यात्मवाणीने आपणां पूर्वाचार्योए परंपराए वहेवरावी; आपणां हाथमां समी माटे तेमनो जेटलो उपकार मानीए तेटलो न्यून छे. आपणां पूर्वाचार्यो तत्त्वज्ञानने जाणतां हता. एटलुं ज नहि पण जाणीने ते प्रमाणे ध्यान धरतां हतां अने स्वकीय चेतननी शुद्धि करवा आंतरदृष्टिथी वर्ततां हतां अने तेओने अध्यात्मज्ञान जाळवतां घणुं वेठवू पडतुं हतुं; पूर्वे मनुष्यो मात्र सारां ज हतां एवो अभिप्राय कोईनाथी बांधी शकाय तेम नथी. प्रत्येक सैकामां विद्वानो तत्त्वज्ञान वा अध्यात्मज्ञाननो गमे ते भाषामां गमे ते उपायोथी फेलावो करे छे.कोईपणजातना वक्षनांबीजोपोतानी योग्यसंस्कारित भूमिमां उगी नीकळे छे. ते प्रमाणे अध्यात्मज्ञाननां विचारो संस्कारित अने आध्यात्मज्ञानने योग्य एवा मनष्योनां हृदयमांप्रगटी नीकळे छे, अने ते विचारो पोतानो फेलवो करवाने पोते सर्मथ बने छे. खारी भूमिमां बीजने उगवानी अयोग्यता छे तेथी खारी भूमिमां नहि उगनार बीजो खारी भूमिमां छतां पण उगी नीकळतां नथी, ने तेनो नाश थाय छे; ते प्रमाणे अध्यात्मज्ञाननां विचारो उगी नीकळवानी अर्थात् प्रगट थवानी जेओमां अयोग्यता छे तेवा मनुष्योनां हृदयमां अध्यात्मज्ञाननां विचारो प्रगटी शकतां नथी अने तेओने आपेलो उपदेश पण निष्फळ जाय छे. परस्पर विरुद्ध विचारोनुं प्राकट्य प्रतिपक्षी विचारो गमे ते सैकामां गमे त्यां परस्पर विरुद्धभाव दर्शावे छे. कोईपण काळ एवो गयो नथी तेम जनार नथी के, जेमां सम्यक्त्व अने मिथ्यात्वज्ञान तथा ते बंनेने धारण करनाराओमां परस्पर विरुद्धता न होय, पुण्यनां विचारोनां प्रतिपक्षी पापनां विचारो, समानकालमां गमे त्यां विद्यमान होय छे. अध्यात्मज्ञाननां प्रतिपक्षी विचारो जडवादीओनां होय छे नास्तिक विचारो पोताना बळ वडे आत्मिक विचारो उपर कबजो मेळववा प्रयत्न करे छे. आध्यात्मज्ञानीओना विचारो खरेखर जडवादनो नाश करवा प्रयत्न करे छे. अर्थात् जेनामां आत्मज्ञान प्रगट करे छे तेवा मनुष्यो मिथ्यात्वनां विचारोनो नाश करवानो उपदेश अने लेखनादि द्वारा प्रयत्न करे छे. अनेकान्त ज्ञान शक्ति खरेखर एकान्त मिथ्या विचारनो जगतमांथी नाश करवा प्रयत्नशील बने छे; सारांश के अनेकान्तधारक ज्ञानीओ एकान्तवादना कुविचारोनो नाश करवाने पोतानाथी बनतुं कर्या विना रहेतां नथी. जगतमां अनादिकाळथी आ प्रमाणे चाल्या करे छे अने चालशे. For Private and Personal Use Only
SR No.525319
Book TitleShrutsagar 2017 02 Volume 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2017
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size11 MB
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