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October-2016
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SHRUTSAGAR
तारक ऋषि नीग्रंथ पुरण ब्रह्मचारी। दमता इंद्री वांण पंच महाव्रतधारी सहे परीसा आप दुद्धर तपकारी। आगम आज्ञा जीत करें करणी सारी गुणगण सतावीस एहवा मुनी(नि) वंदो। कह अमृतसूरीश धनधव ची(चि)र नंदो
॥ इति साधुपदस्तवनं ।। जिनवर भाषी(षि)त सु(शु)द्ध दरसन चित धारो री। देव-गुरु-धरम स्वच्छ हृदय मझारो (री) सडसठभेदें सार सि(शि)वफल दाता रे । इणविन निर्फल ग्यान केसें उपजें साता (रे) मिथ्याती संग त्याग सूक्ष्म भाव विचारी री। जे आदरें क्षायकभाव सुलभ संसारि (री) दरसनपद जो षष्ट धनधव हरी धारै । कहें अमृतसूरीश पामें भवनो पारें
॥ इति दर्स(श)नपदस्तवनं ।। जय जय ज्ञान दिणंद सुरतरु अभीरामी। आराधो सु(शु)भमन अनुभव परीणामी मति आदी पंच प्रकार भेद इकावन तासें री। जगमे तारक एह सहु भाव प्रकासें (री) भक्ष अभक्षादि कृत्य ज्ञानथी जांणे री। ज्ञान विना पशु जेम सा(शा)स्त्र में वखांणे (री) ज्ञान की कीर्तना कोय पार न पावे री। कहे अमृतसूरीश धनपत हरी ध्यावे री
।। इति ज्ञानपदस्तवनं ।।
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