________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अक्टूबर-२०१६
॥३॥
॥४॥
॥१॥
॥२॥
॥३॥
श्रुतसागर
सहजानंदस्वरूप अव्यय अविकारी (री)। एहनी हुं वारंवार जाउं बलीहारी री रक्तवर्ण शुभ ध्यान धनधव हरी ध्यावे री। तीन करण करी शुद्ध अमृतसुरी(सूरि) गुण गावे री
॥ इति सिद्धपदस्तवनं ।। तिजै पद गनराज विमल क्रिया धारी । मुनिनायक मुनिसेव्य शाशनोन्नतकारी स्वपर समय जांण अलोभी सुद्ध भाखी। आचारज भगवान अनुभवपंथ सुदाखी सकल मुनी(नि) मांहैं श्रेष्ट(ष्ठ) प्रवचनप्रदा। तारी सूरीवर धर्माधार जगवं(ब)धव जगभ्राता षट्त्रिंशत् गुणाधार सुरी मन भावें री । वंदे अमृतसूरीस धनधव हरी ध्यावें री
॥ इति आचार्यपदस्तवनं ।। श्री पाठक माहाराज जगभ्राता उपगारी । द्वादश अंगी के जांण भवी जीव हितकारी सीतल चंद समांन अमीयरस वाणी। पंचवर्ग परिमाण गुणमणि खांणी गुणगण शोभी(भि)त गात्र परम सुखकारी। नीलवरण सुरंग वंदो वारंवारी उवझाय पद दिणंद धनधव हरी आराधे री। कहें अमृतसूरींद वंछी(छि)त फल साधे री
॥ इति उपाध्यायपदस्तवनं ।। श्री साधु मुनिराज पंचमपद अभीरांमी री। षट्काया प्रतीपाल आतमहितकामी (री)
॥४॥
॥१॥
॥२॥
॥३॥
॥४॥
॥१॥
For Private and Personal Use Only