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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 SHRUTSAGAR October-2016 किया गया है। ___ इस प्रत की लंबाई x चौडाई २६.०५ x १३.०० है। प्रत की दशा श्रेष्ठ है, जो आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर-कोबा के ग्रन्थागार में सुरक्षितरूप से संग्रहीत है। प्राचीन ग्रंथों के संरक्षण संपादन व विद्वानों को योग्य सूचना एवं शोधसामग्री उपलब्ध करना इस भण्डार की प्रमुख विशेषता है। अपनी बहुमुखी प्रतिभा एवं कार्यप्रणाली के कारण आज यह भण्डार देश-विदेश के प्रसिद्ध व नामचीन ग्रन्थागारों में प्रमुख स्थान प्राप्त कर चुका है। ॥१॥ ॥२॥ अमृतसूरिकृत नवपद स्तवन ॥श्रीगुरुभ्यो नमः॥ ॥ मनोहर सिंधू देश ए देशी॥ जय जय श्री अरिहंत परमेसर जिनरायें री। जगबंधु जगनाथ भविजन सुखदायें री निर्यामक सत्थवाह माह माहण जांणो रे। जगतारण जिन ईस वर करुणानी(नि)धानो (रे) विस्वंभर जगतात भगवन् वी(वि)स्वानंदी (री)। सहु जगमंडन स्वाम कस्मल चिर निकंदी री कर्मारिगण जित भए तेरमें गुणठांणे री। वंदें अमृतसु(सू)रीश धनधव हरि सुजांने री ॥ इति अरिहंतपदस्तवनं ।। दूजे पद श्री सिद्ध अनंतगुणनिधानै री। अजरामर अकलंक नहि ओपम अनुमान री अचल अमल अलेशी सब लोकांतवासी री। चिदानंद चित् रूप अलख अविनासी (री) ॥३॥ ॥४॥ ॥१॥ ॥२॥ For Private and Personal Use Only
SR No.525315
Book TitleShrutsagar 2016 10 Volume 03 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2016
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size8 MB
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