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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 18 ॥१७॥ ॥१८॥ ॥१९॥ ॥२०॥ श्रुतसागर नवम्बर-२०१५ राजगृहि नगरी तंतुवायशाल, रह्या प्रभु तिहां तप उजमाल । मासखमण पारणुं जेह, श्रेष्ठि विजय घरि कीधु प्रभु तेह गोशालो मिलीयो राजगृह ठांम, पारणुं बीजुं आनंदधाम । सुनंद घरि पारणुं परमान्न, बपहुल द्विज घरि तेहीज अन्न नंद घरिं पारणुं बांभणगांम, तिहां थी प्रभु विचरें गांम आराम । शालिशीर्षि प्रभु प्रतिमा उद्यान, तिहाथी वीर पाम्या लोकावधिनांण ॥१९|| देश अनार्य बहु म्लेच्छ जिहां, कर्मखय करवा विचरें वीर तिहां। विचरी पेढालोद्यांने प्रभु आव्या, एकरात्रिनी प्रतिमा सोहाव्या इंद्र कहें वीर धीरता जेहवें, देव अभव्य संगम तेहवें। बोल्यो चलावू तेह प्रत्यक्ष, करी प्रतिज्ञा आव्यो समक्ष ॥२१॥ प्रथम धूलि वृष्टि कीधी अतोल', पिपीलीका डंसा३ धीमेलि नोल। विछी अहि मुषक हस्ती हस्तीनी पिशाचरुपनि थाय वाघनी" ॥२२।। सिद्धारथ त्रिशला करुणा विलापी पगविचिं वह्नि जालें बहुपापी"। शकुनी खरवायुं कलकलीवात सहसभारने चक्रिं अघात दिवस विकुर्वि कहें तुमे उठो, स्त्री नो परिसह करें ते रुठो। उपसर्ग वीस रयणीमां थाय, षटमास सुधी आहार अंतराय ॥२४॥ भ्रष्ट प्रतिज्ञा मुख करी शांम, देवलोकमांहिं जाये ते जाम। हरिइं ते काढ्यो मेरुगिरि आवें, आशातन केरां फल बहु पावें पोशवदि पडविं अवसर जोई, आव्या कोशंबीइं जगगुरु सोई। अभिग्रह ग्रहीनें घरघरि फिरता, नंदा मृगावती आरति करतां अभिग्रह पूरवा शतानीकराय, करें भगतिथी विपुल उपाय। चंदनबाला घरिं प्रभु जाई, षटमासी तपनुं पारणुं थाई ॥२०॥ छम्माणि मांसि वीर प्रभु आवें, प्रतिमा रह्या तिहां वृषभ भलावें। आवि गोवाल पुछे अहो देव, वृषभ किहां हाल्या कहो मुज हेव ॥२३॥ ॥२५॥ ॥२६॥ ॥२८| For Private and Personal Use Only
SR No.525304
Book TitleShrutsagar 2015 11 Volume 01 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2015
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size4 MB
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