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श्री महावीरस्वामीनोसलोको
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॥ श्री गोडी पार्श्वनाथाय नमः ॥ ॥ अथ सिल्लोको लिखिइं छइं ॥
॥दोहरो॥ प्रणमुं श्री महावीर चरण, गौतमादि गणधार। वली निजगुरु पदकज नमुंग्यांन दृष्टि दातार
॥अथ चालि सिलोकानी॥ प्रणमुं सरसति अमृतवाणी, कविजन दाता त्रिभुवन जांणी। चोवीसमो जिनवर श्री माहावीर, कहेंस्युं सिलोको तेहनो धरि धीर नयसार आदि, वीर पर्यंत, मोक्ष पहुंता कर्म करी अंत। च्यार अधिकारें कहु विचारी, प्रवचन केरी वाणी संभारी माहाविदेह पश्चिम मांहिं, नयसार-नामा ग्रामाधिप त्यांहिं। राजा अदेसिं वनमां परवरीओ, काष्ट लेवाने तेह संचरिओ मारगभ्रष्ट मुनि तिहां एक, देखी नयसार धरि विवेक। दान सुपात्र विपुल तिहां दिधो, देखाडे मारग जेह प्रसिद्धो उपदेश देई समकित आपें, साधुजी जेहथी दुरगति कापे। नवकार अंते समरतो हेव, आयु-पल्योपम सौधर्मे देव भरतचक्रीनो पुत्र उदार, तिहाथी चवीने हुओ सुखकार। वैराग्य पांमी ऋषभजी पासें, संयम लेई योग अभ्यासे अधित-एकादश-अंग सुजाण, ग्रीषम तापिं पीड्यो धिखाणि । चिंते संयमनो भार छै मोटो, तेह निरवेंहवा हूं तो छू छोटो इम चिंतिने अभिनव वेष, कीधो त्रिदंडी वेष विशेष । ऋषभ विचरता वनिताई आवें, चक्री आदें सहु हर्षि वधावे
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