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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर 10 नवम्बर २०१५ चार ढालमा १३१ गाथा चोपाइ बंधमां रचेली छे. प्रथम ढालमां ३५ गाथा, द्वितीय ढालमा २७ गाथा, तृतीय ढालमा ३७ गाथा, चतुर्थ ढालमा ३२ गाथा छे. प्रस्तुत कृतिमा कविए पोतानी कवित्वशक्तिने निखार आप्यो छे. परिणामे कृतिनी उपादेयता ओर वधी जाय छे. द्वितीय अधिकारनी २३मी गाथामां परमात्माना दीक्षानो आचार जणाववा लोकांतिक देवनो उल्लेख नथी थयो. परंतु आकासमांथी देववाणी थाय छे. पर्युषणमां पण २७ भवनुं स्तवन अथवा पंच कल्याणकना स्तवननी जेम बोलीए तो आनंद विशेष आवशे. कर्ता परिचय :- तपागच्छनायक श्री विजयप्रभसूरिना शिष्य पू. पुण्यविजयजी महाराजना शिष्य पू. गुरु रंगविजयजी ने वंदन कर्या छे, त्यार पछी कविजननी दातारूप श्री सरस्वतीदेवीनं स्मरण करीने चोवीसमां तीर्थंकर, त्रिशलानंदन श्री महावीरस्वामी परमात्मानी स्तुति करवा रूप आ सलोकोनी रचना पू. अमृतविजयजी महाराजे करेल छे. रचना स्थळ अने समय :- १३१ कविता द्वारा एक अद्भुत, अनुपम अने अद्वितीय सलोको, पूज्यश्रीए राजनगर (हाल - अमदावाद) मां संवत् १८०१ ना पोषवदि चोथना मंगलदिवसे रच्यो छे. श्री कल्पसूत्रमां आवतुं गद्य रूप श्री वीर चरित्र आसलोकोमां पद्य रूपे लागे छे. प्रतनी झेरोक्ष पू. मुनिश्री जिनभद्रविजयजी म. सा. ए श्री अमृतविजयजी जैन लायब्रेरी - मोरबीमांथी मेळवीने लिप्यंतर करवा माटे आपी ते बदल तेओनो हुं ऋणी छु. * श्री केशरसूरि समुदायवर्ति श्री हेमशिशु विज्ञानचरणरज मुनि प्रियंकर प्रभ विजय नूतन उपाश्रय, साबरमती, आसो सुदी, अष्टमी, २०७१ प. पू. आ. श्री प्रभवचन्द्रसूरि स्वर्गतिथि For Private and Personal Use Only
SR No.525304
Book TitleShrutsagar 2015 11 Volume 01 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2015
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size4 MB
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