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श्री महावीरस्वामीनोसलोको
मुनि प्रियंकर प्रभ विजय* सलोको एटले कडीबद्ध विगत। अने ते प्रायः सर्वने पोत-पोताना कंठमा सहजताथी गावा तेमज सहजताथी समजवान अद्वितीय साधन होवाथी जैनजैनेतरादि अनेक संप्रदायोमा आनो प्रचुर उपयोग पूर्वकालमां थयेलो छे, अने ते कालमां भाट-चारणादि सलोकोना माध्यमथी भवाइ विगेरे करवा द्वारा लोकोना मनोरंजननी साथे-साथे जीवनमा धर्मने केवी रीते वणवो ते खुब ज सरळताथी लोकोनी सामे रजू करता हता.
वर्तमानकालमां लोको पोतानी भाषाने, पोताना धर्मने, पोताना संस्कारोने, पोताना कर्तव्योने, पोताना परिधानोने, संबंधोने ज्यारे भूलवा लाग्या छे त्यारे आवा अद्भुत सलोकाओ तेनी भाषाने, तेना धर्मने, तेना संस्कारोने, तेना कर्तव्योने, तेना परिधानोने, अने तेना संबंधोने जागृत करे छे.
जेम रामायण अने महाभारतमां, जीवन केम जीवq?, जीवनमां कोनी साथे केम रहे?, जीवनमां कोर्नु केटलुं महत्व छे?, जीवनमां नाना अने मोटा माणसोनी साथे केवो वर्ताव राखवो? विगेरे विगेरे अनेक पासाओनो विचार छे.
तेम प्रभु महावीरना आ सलोकामां पण शुं करवू?, शुं न करवु?, केम जीव?, के, जीववु?, केवी रीते जीवQ?, केवो व्यवहार करवो? विगेरे विगेरे खुब सरळ अने बालभोग्य भाषामां बतावेल छे.
सम्यक्त्व प्राप्ति पूर्वना भवो एकडा वगरना मींडानी जेम व्यर्थ होवाथी तेनी गणतरी करवामां आवती नथी. सम्यक्त्व पाम्या पछी ज भवोनी गणतरी चालु थाय छे. प्रभुवीरनी मोक्षमार्गनी सफर पण नयसारना भवथी शरु थई अने श्री वर्धमानस्वामीना भवमां पूरी थई. कारतक वद अमावस्यानी रात्रिना द्वितीय प्रहरनी चरमक्षणो प्रभुवीरनी संसारनी समाप्तिनी परम क्षणो हती. ए सम्यक्त्वथी मोक्षमार्गनी सफरनी प्रत्येक पळोने बने एटलं संक्षिप्तमां आ 'सलोको'मां वर्णव्यु छे.
कृति परिचय :- आ कृति १३१ कवितानी कडीओ द्वारा गुंथायेली छे.
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