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SHRUTSAGAR
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श्री विमलसोमसूरि पटधार, एह पालइ पंचाचार । जे सवि जी विकार लाल (।) रे ॥४॥
वाणी रसि मोह्या भूप, उपसम रस जाणे कूप। मनमोहन अभिनव रूप लाल रे ॥५॥
शीलई सु(मु?) नि जंबुकुमार, लबधइं गौतम गणधार । कलियुगमांहि धनुन्ना) अणगार लाल (1) रे ॥६॥
चिरप्रति एह गुरुराय, सोवनवरणी जस काय | वाचक राजरतन गुण गाय लाला रे ॥७॥
इति श्री विशालसोमसूरि भास ॥ छ ॥
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September-2015
ज्ञानमंदिरना प्रकाशनो
आ
श्रुतसेवा अने श्रुतोपासना ए ज्ञानमंदिरनी आरत छे. जे देव अने गुरुना निःस्वार्थ अने उन्नतिकारक मार्गदर्शनथी आ पुण्यकार्य नदीनी जेम निरंतर थया करे छे.... कार्योंथी विचारक वर्ग, संशोधक वर्ग अने श्रद्धाळु वर्गने आनंद अने अहोभाव थाय ए सहज छे. श्री संघना चोगमने वधुने वधु प्रकाशित करवा माटे ज्ञानमंदिर तरफथी साहित्योपासनाना नक्कर परिणाम स्वरूपे नवा प्रकाशनो प्रकाशित थया छे.
कैलास
'श्रुतसागर ग्रंथसूची भाग - 18
हस्तप्रतोना सूचिकरणमा जे ग्रंथो थकी एक नवीन परिपाटी श्रीसंघ अने विद्वद्समाजना करकमलोमा समर्पित थई छे. एवी कैलासश्रुतसागर ग्रंथसूचीनो अढारमो भाग प्रकाशित थई गयेल छे.
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धम्मं शरणं पवज्जामि भाग 1-4 (गुजराती)
जीवनना भीतरी रहस्योने उजागर करता ग्रंथोनी श्रेणिमां धर्मबिन्दु ग्रंथनुं स्थान आगवुं छे. ए ग्रंथ उपर आचार्यदेव भद्रगुप्तसूरिजी म. सा. नुं प्रवचन स्वरूप विवेचन प्राप्त थाय ए आनंदनी मोटी बीना छे. कुल चार भागोमा धर्मबिन्दु ग्रंथना मर्मने 'आलोकित करती ग्रंथ एटले धम्मं शरणं पवज्जामि...