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श्रुतसागर
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श्रीबल जोवइ छांना रही रे, बोलइ बहु अपवाद मेरे साहिब । मुख मीठा मनि द्रोहीया रे, फोकट करइ विवाद मे (रे) साहिब ||६||
अधिकार पामी आकुला रे, सजन प्रति दिइ दुख मेरे साहिब । मद मछर मूरझया घणुं रे, थंभु तेहनां मुख मेरे साहिब ||७||
निस्वारथ वयर लेखवर रे, भाखड़ आल पंपाल मेरे साहिब । ते दुसमननई ब (वं) दुरे, ए मुझ वीनता (ती) दयाल मेरे साहिब ||८||
सितम्बर २०१५
तुझ परत पाहण तर रे, विष हुइ अमृत सार मेरे साहिब । लोह कनक तुझथी हुए रे, तु एहनुं कसिउ विचार मेरे साहिब ||९||
जेमइ मागिउं तुंहनइ रे, ते तई पूरी आस मेरे साहिब | एहइ काम होस्यइ सही रे, ताहरू मुझ विश्वास मेरे साहिब ॥ १० ॥
मात पिता विण कहनइ रे, कहीइ मननी वात मेरे साहिब । तेणइ सामी समरथ थई रे, दिउ द (दु) समन शिरि (रे) लात मेरे साहिब ॥११॥
एणी वातई आलस करी रे, जु नही थाइ एह काज मेरे साहिब । तु सेवक अवरनई ध्यायस्यइ रे, तेहइ पणड़ पणइ तुम्हनई लाज मेरे साहिब । १२॥
संवत सोल पंचाणूंड रे, इडरि रहिया चुमास मेरे साहिब ।
राजरत्न पाठक वीनवइ रे, प्रभु पूरउ मननी आस मेरे साहिब ॥१३॥
॥ इति श्रीशंखेश्वरपार्श्व जिन स्तव ॥
(२)
श्री विशालसोमसूरि भास
गच्छनायक गुणन (नि)धि गायुं, मनवंछित सवि फल पायुं, एह सूरति की बलि जायुं ॥१॥
संतोष साह कुलिचंद नारंगदे कूखि आनंद।
पाय पूजइ मोटा नरिंद लाला रे ॥३॥
विशालजी गुरु वंदु, मेरु गुरु गज गति चाल ।
शुद्धइ मनि महाव्रत पालई, क्रोधादिक वयरी टालई लाला रे ॥२॥
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