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बे अप्रगट लघुकृतिओ
किरीटभाई शाह मध्यकालीन जैन साहित्यने शोभायमान करतुं लघुकृत्यात्मक साहित्य विशाळ संख्यामां उपलब्ध थाय छे. ए उपलब्ध साहित्यमा अप्रकाशित एवी बे लघुकृतिओ अले प्रकाशित करी छे.
क्रमांक एक पर नोंधायेल कृति शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तवन वि. सं. १६९५मां ईडर शहेरमां चातुर्मास दरम्यान रचवामां आवेल तेमज अन्य विशालसोमसूरि भास आम बे अप्रकाशित लघु कृतिओ अले प्रकाशित करी छे. विशेष जिज्ञासुए कर्ता संबंधी विशेष परिचय श्रुतसागरना प्रथम वर्षना दशमां अंकथी प्राप्त करी लेवो.
प्रस्तुत बन्ने कृति आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिरमा हस्तप्रत क्रमांक नं. ४०७३४ अने ४४४८४ पर नोंधायेल छे.
श्री शंखेश्वरपार्थ जिन स्तवन ॥ कोईलो परब(व)त बूंघलु रे लो(ल)-ए देशी ।। ||राग-केदारु॥ सुरतरू मुझ अंगणि फू(फ)लिउरे, तूठउ अमृत जलधार मेरे साहिब। मनह मनोरथ सवि फल्या रे, दीठउ तुझ दीदार मेरे साहिब ॥१॥ श्रीसंखे(श?)रराजीउरे, परउपगारी पास मेरे साहिब। भगतवछ(त्स)ल सहु तुज कहि रे, तिणि हुं करुं अरदासे मेरे साहिब ॥२॥
(आंचली) हरिहर ब्रह्मा कोई जपइरे, कोई देवीको दास मेरे साहिब। राम रहीम कोई नमइरे, मुझ मनि एक श्रीपास मेरे साहिब ॥३॥ युगज समरइ रेवानदी रे, कोकिल वाल्हु वसंत मेरे साहिब। मयूर मेहो मेहो जपइ रे, तिम तुं जिन मुझ चिं(चि)त मेरे साहिब ॥४|| ताहरइ भगतअ छइ घणारे, माहरइ तुं आधार मामे)रे साहिब। जुपोतानु करी लेखवुरे, तु वीनती एक अवधारि(र)() मेरे साहिब ॥५॥
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