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श्रुतसागर
जुलाई-अगस्त-२०१५
28 शारदा-लिपिबद्ध शिलालेख
(काश्मीर संग्रहालय की वेबसाईट से साभार) भारतीय प्राचीन श्रुतसंपदा को जीवित रखने में इस लिपि का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। प्राचीन इतिहास के पुनर्लेखन में भी शारदा लिपिबद्ध शिलालेखों, दस्तावेजों, सिक्कों, पाण्डुलिपियों, अभिलेखों एवं अन्य साक्ष्यों की अहम भूमिका रही है। काश्मीर सहित भारतीय विविध संग्रहालयों में संगृहीत शारदा लिपिबद्ध इन पुरालेखों के गहन अध्ययन की आवश्यकता है, जिसके माध्यम से अवश्य ही प्रगति के नये पथ प्रकाशित होंगे। इस लिपि में निबद्ध पाण्डुलिपियों के पाठ अत्यन्त शुद्ध प्राप्त होते हैं, जिस कारण इस लिपि में उपलब्ध प्रतें आज भी आधुनिक समीक्षकों की प्रथम पसन्द बनी हुई हैं।
हालाँकि वर्तमान में भारतीय ग्रन्थागारों में प्राप्य शारदा लिपिबद्ध पाण्डुलिपियों की संख्या लगभग एक लाख के करीब है। लेकिन जो भी है वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण
और हमारे ग्रन्थागारों की शोभा में अभिवृद्धि करनेवाला है। यदि एक सुनियोजित सर्वेक्षण किया जाये तो इस संख्या में वृद्धि होने की भी पूरी संभावना है। मुझे पूरा विश्वास है कि एकदिन गिलगिट व तुर्फान की तरह अन्य स्थानों पर भी शारदा लिपिबद्ध प्राचीन खजाना अवश्य मिलेगा, जो हिन्दुस्तान के इतिहास को नई दिशा प्रदान करेगा।
इस लिपि ने अपने समान कई अन्य लिपियों को जन्म दिया है, जिनमें से गुरुमुखी, डोगरी, तिब्बती आदि कुछ लिपियाँ तो आज भी प्रचलित हैं। कुछ लिपियाँ
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