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SHRUTSAGAR
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July-Aug-2015 शारदा की तरह ही लुप्त हो चुकी हैं और आज उनको जाननेवाले विद्वान भी नहीं रहे हैं, जो चिन्ता का विषय है।
शारदा लिपि के पठन-पाठन की परंपरा को जारी रखने के उद्देश्य से राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन द्वारा आयोजित 'पाण्डुलिपि एवं पुरालिपि अध्ययन कार्यशालाओं' में इस लिपि को भी पढाया जा रहा है, जो सराहनीय है। मुझे भी इन कार्यशालाओं में अध्ययन एवं अध्यापन हेतु समय-समय पर सम्मिलित होने का अवसर प्राप्त होता रहा है, जिसे मैं अपना सौभाग्य समझता हूँ।
इस अवसर पर मैं काश्मीर प्रान्तीय शारदालिपि विशारद गुरुवर प्रों टी.एन. गञ्जू महोदय को सादर स्मरण करना चाहता हूँ, जिन्होंने विविध कार्यशालाओं के माध्यम से हमें इस लिपि का गहन अध्ययन कराया। प्रो. गञ्ज महोदय अस्सी वर्ष की उम्र में भी एक नौजवान की तरह शारदा लिपिके संरक्षणार्थ आजीवन कृत संकल्पित हैं। इस संकलन में यहाँ जो कुछ भी मैं संकलित कर सका हूँ वह सब उनके ही आशीर्वाद का फल है। यह संकलन उन्हें सादर समर्पित करते हुए भगवान से प्रार्थना करता हूँ कि उनको सुदीर्घ आयुष्य प्रदान करे, जिससे शारदा लिपि के गूढ रहस्यों को प्रकाश में लाया जा सके।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस संकलन के माध्यम से समाज में शारदा लिपि के प्रति जागृति आयेगी और इसे पढने-पढाने वालों की संख्या एवं रुचि में अभिवृद्धि होगी। आशा है गणमान्य विद्वज्जन इस लिपि को जीवित रखने के लिए योग्य प्रयास करते रहेंगे और हमारी यह प्राचीन थाती युग-युगान्तरों तक पुष्पित-पल्लवित होती रहेगी। धन्यवाद्॥
संदर्भ ग्रन्थ १. भारतीय प्राचीन लिपिमाला, संपा. गौरीशंकर हीराचंद ओझा। २. प्राचीन भारतीय लिपिशास्त्र एवं मुद्राशास्त्र, लेखक-ए.पी.त्यागी एवं आर.के.रस्तौगी। ३. भारतीय पुरालिपि विद्या, लेखक-दिनेशचंद्र सरकार। ४. शारदा-लिपि-प्रावेशिका, लेखक-प्रो. टी.एन. गङ्गे। ५. शारदालिपि मञ्जूषा, लेखक-डॉ. अनिर्वाण दश। ६. भारतीय प्राचीन लिपिबोधिनी, लेखक-डॉ. उत्तमसिंह।
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