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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 10 श्रुतसागर जुलाई-अगस्त-२०१५ हिन्दुस्तान के ग्रन्थागारों में आज भी शारदा लिपिबद्ध हस्तप्रतों की संख्या लगभग एक लाख से अधिक है। यदि योजनाबद्ध सर्वेक्षण किया जाये तो इस संख्या में और भी वृद्धि होने की निश्चित संभावना है। विदेशी भण्डारों में भी कुछ प्रतियाँ होने के साक्ष्य मिल रहे हैं। इस लिपि में निबद्ध हस्तप्रतें पाठ शुद्धता की दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण मानी गई हैं। इतिहासकार कल्हण अपनी राजतरङ्गिणी में प्राचीनतम शारदा लिपि का साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए कहते हैं दृष्टैच पूर्वभूभर्तृप्रतिष्ठावस्तुशासनैः। प्रशस्तिपट्टैः शास्त्रैश्च शान्तोऽशेषभ्रमक्लमः।।' अर्थात् 'प्राचीन राजाओं के द्वारा निर्माण करवाये गये देवमन्दिर, नगर, ताम्रपत्र, शासन तथा प्रशस्तिपत्र एवं सामायिक काव्यादि ग्रन्थों के अध्ययन से मेरा भ्रम नष्ट हो चुका है। इससे इतना तो सिद्ध हो ही जाता है कि उपरोक्त अभिलेखों में से सब नहीं तो, कुछ की लिपि तो अवश्य ही शारदा रही होगी। लेकिन कालान्तर में इन साक्ष्यों का क्या हुआ एवं कब, कहाँ और कैसे लुप्त हो गये यह एक गहन शोध का विषय है। चीनी यात्री ह्वेनसांग एवं फाह्यान ने अपने याला वर्णन में काश्मीर में शारदा लिपि के गहन अध्ययन और पठन-पाठन की परम्परा का उल्लेख किया है। भिक्षु हेनसांग तो वर्षों तक काश्मीर के 'जैनेन्द्र विहार' में रहकर शारदा लिपिबद्ध ग्रन्थों का अध्ययन, चिन्तन, लिप्यन्तर एवं चीनी भाषा में अनुवाद करते रहे। निश्चय ही इन ग्रन्थों में संस्कृत, पालि, प्राकृत एवं अपभ्रंश का एक अपार साहित्य रहा होगा। कश्मीरी शैवदर्शन का आधारभूत ग्रन्थ शैवसूत्र भी आचार्य वसुगुप्त की कठिन तपस्या और खोज के उपरान्त ही 'महादेव घाटी में शंकर उत्पल' पर शारदा लिपि में अंकित मिला, जिस पर ८७ सूत्र निबद्ध हैं। 'अलहिन्द' ग्रन्थ के रचनाकार अल्बेरूनी (१०वीं शताब्दी) ने भी अपने इतिहास में काश्मीर की लिपि शारदा का उल्लेख सिद्धमातृका नामकरण से किया है। इनका मानना है कि यह लिपि काश्मीर, मध्यदेश तथा वाराणसी में प्रचलित थी एवं मालवा में 'नागर लिपि' का चलन था। उस समय काश्मीर तथा वाराणसी शिक्षा के प्रमुख केन्द्र थे। चीन देश के तआंग साम्राज्य के इतिहास' में भी काश्मीर की लिपि शारदा का उल्लेख हुआ है, जो इसे अत्यन्त प्राचीनता की ओर ले जाता है। १. राजतरङ्गिणी, तरङ्ग-१, श्लोक-१५ For Private and Personal Use Only
SR No.525301
Book TitleShrutsagar 2015 07 08 Volume 01 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2015
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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