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श्रुतसागर
मे-जून-२०१५ अष्टापदगिरिमंडणुए, शंभव सुखदातार, श्रीविशालसोमसूरीसरू, संघ सकल सुखकार ॥१॥
॥ इति श्री शंभव नमस्कारः ।। श्रीसंभव जिनवर सुखकरू, जस पाय नमइ सुर-नरवरू, श्रीजितारिनृपकुलि दिनकरू, तस वंदइ विशालसोमसूरीसरू ||३||
॥ इति शंभवस्तुतिः ॥ नमु निरंतर भव्य लोक, अभिनंदन जिनवर, भावहिभंजन भूतलइ, नही एहवु सुरेसर, संवरनृपकुलकमलि भानु, सिद्धारथनंदन, जय जिन तिजगपूअणीज्ज, जगजनआनंदन, एकमनांजे चितिधरी ए, आराधइ गुणवंत, श्रीविशालसोमसूरीसरू, भवभंजन भगवंत ॥१॥
॥ इति श्री अभिनंदन नमस्कारः ।। अभिनंदन जिनवर वंदीइ, पोतानां पाप निकंदीइ, श्रीविशालसोमसूरि आणंदीइ, चउथा जिननइ अभिनंदीइ ॥४॥
॥इति अभिनंदनस्तुतिः ॥ पंचम जिन पहु पूअणिज्ज, श(शि)वरामारातु, सुमति सुमतिदातार सार-गुणे करि मातु, मेघरायसुत जास मात, सुमंगला राणी, प्रहि ऊठीनइ भजउ भावि, भविका नित प्राणी, श्रीविशालसोमसूरि जेहना ए, गुण समरइ दिन-राति, भजु भविक जन भावसिउं, सुमतिनाथ सुप्रभाति ॥१॥
॥ इति नमस्कारः॥ सुमति सुमति अप्पइ, दुख हेलांसु खप्पइ, सेवक सुख थप्पड़, रागनई रोस कप्पइ,
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