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SHRUTSAGAR
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नाभिनरे सरकुलतिलउ रे, मरूदेवीमातमहभार । सोवनवन सोहामणु रे, आशापूरणहार ॥५॥
सुनंदा-सुमंगलानाहलु रे, पांचसई धनुष सुदेह लाख चुरासी पूरव तणुं रे, पाली आयु सुखगेह ॥ ६ ॥
॥ इति श्रीआदिनाथस्तवनम् ॥छ॥ प्रण अजितनाथ, मनरंगि निरंतर,
जितशत्रु- विजयादेवि पुत्र, नित प्रणमइ सुरनर, तारंगागिरि मंडणु प्रभु कुमर विहार, भाव धरी जे धरइ ध्यान, तस भवजल तारइ, श्रीविशालसोमसूरिंदवर, ध्याइं जस बहु ध्यान, कामितफलदायक नमुं, मुंकी मत्सर-मान ॥१॥
॥ इति अजितजिन नमस्कारः ॥
विमलाचलपुरवर धणी रे, आदिजिणंद सुखकार । श्रीविशालसोमसूरि सेवीउ रे, कवि संघसोमनइ जयकार ॥७॥
अजित अजित वंदु, कर्मवल्ली निकंदु, जितशत्रुकूलचंदु, मातविजया सुनंदु, नतनितसुरिंदु, भावसिउं जे फणिंदु, श्रीविशालसोमसुरिदु, जास पादारविंदु ॥२॥
।। इति अजितनाथस्तुतिः ॥ छ।
वीजा देव व हुं अहिनिशि घ्याउं, श्रीजितारिनृपपुत्र, ध्यान ध्यातां सुख पाउं, सेनामाताकूखिहंस, सुरनर गुण गाइ, भक्तिभाव सेवा करइ, ते श(शि) वपुरि जाइ,
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MAY-JUNE-2015
ऋषभजिन! तुम्हसिउं...
ऋषभजिन! तुम्हसिउं ....
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