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श्रुतसागर
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श्री नाभिनंदन सोवनतनुछवि, तारइ आपदपाथजी, श्रीविशालसोमसूरीसर जेहनइ, वंदइ जोडी हाथजी ॥१॥
ते वीस जिणेसर निरूपम, वंदु भविअणवृंदजी, अतीत अनागतनई वर्त्तमान, जे 'हूआ 'जिणचंदजी | शाश्वत जिन विहरमान विदेहइं, दर्शन टलइ दुखफंदजी, श्रीविशालसोमसूरीसर जेहना, वंदइ पयअरविंदजी ॥२॥
आदि जिनेसर वंदीइ रे, सेत्रुंजगिरिसिणगार, पुण्य विना नवि पांमीइ रे, दर्शन एहनुं उदार ॥१॥
जिनवर भाषित अंग इग्यारह बार उपांगह सारजी, छेदग्रंथ षट् दसइ पयन्ना, नंदी अनुयोगद्वारजी मूलसूत्र च्यारमांहिं मेली, प (पि) स्तालीस उदारजी, श्रीसंघ आगलि नित-नित वांचइ, विशालसोम गणधारजी ॥३॥ गोमुख यक्ष चक्केसरिदेवी, शासन सानिधिकारीजी, श्रीविशालसोमसूरीसर संघनइ, आपइ संपद सारीजी। कुमति निवारण जन-मनठारण, भविकजीव उपगारीजी, दिउ सवि सिद्धि कहइ इम पंडित, सिं (सं) घसोम सुखकारीजी ॥४॥ ।। इति श्रीआदिनाथस्तुतिः ॥ छ ||
।। ढाल - यादवराय! रहिउ डुंगरडइ जइ । ए देसी ॥
तरणतारणप्रवहणसमु रे, सकल जंतुप्रतिपाल। पय नमतां पातिक टलइ रे, दीनानाथ दयाल ॥ ३ ॥
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ऋषभजिन! तुम्हसिउं लागु रंग, भलई पामिउ तुम्ह पयसंग । ऋषभजिन! ए होयो प्रेम अभंग, ऋषभजिन! तुम्हसिउं लागु रंग ॥२॥
भवभमतां पामिया रे, स्वामी तुम्ह पय पद्म । सेवंतां सुख सवि मिलइ रे, ते पांमई शिवसद्य ॥४॥
- जून - २०१५
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ऋषभजिन ! तुम्हसि ...
ऋषभजिन! तुम्हसिउं...