SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रुतसागर www.kobatirth.org 11 माटे (प्रभु) तारो मुझ दआ करी, उतारो भवपार (कें) तारक मआ करी ॥९॥ पी (पिता जीतारि सेनाकुंखें अवतर्या, कुल अजुंवाल्यो राज के सी (शि) वलछि वर्या । महि(ही) तट सि (स) र (रि)ता निकट उमेटो सहु सुणो, राज करे नाहरसंघ के गढ रलीआंमणो ॥ १० ॥ संभवनाथ वी (वि) राजे तेणें हांमे सही, पूजा रची जिन अंग कई (के) हरखसु उमहिं (ही)। मेटामांहि श्रावक धरमधोरी घणा, तप जप क्रिया खरचवें नवि राखे मणा ॥११॥ संवत १८ (अढार) बारोतरि संभवनाथनी, आंगी रची अति प्रेम के नी (नि) रमलभावनी । केसर चंदन फुलपगर महकें घणा, कपु(पू)र घसी घनसारसुं करि (री) तिहां छांटणा ॥१२॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only अप्रैल - २ - २०१५ ए पु (पू)जा जिनराजनि (नी) भवनी (नि)स्तारणी, नरक तणा दुख दोहग घाट नी (नि) वारणी । श्री जो (जी) तरत्न गुरु चरणकमल भावई नमी, राजरत्नमुनी (नि) भाखई कें पूजा मन गमी ॥१३॥ ।। इति श्री उमेटामध्ये संभवनाथ वी (वि) राजमान तेहनो स्तवन संपूर्ण ॥ ||लखी (खि) तं गलाल ॥ श्री शुभं भवतु ॥
SR No.525299
Book TitleShrutsagar 2015 04 Volume 01 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2015
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy