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श्रुतसागर
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माटे (प्रभु) तारो मुझ दआ करी, उतारो भवपार (कें) तारक मआ करी ॥९॥
पी (पिता जीतारि सेनाकुंखें अवतर्या, कुल अजुंवाल्यो राज के सी (शि) वलछि वर्या । महि(ही) तट सि (स) र (रि)ता निकट उमेटो सहु सुणो, राज करे नाहरसंघ के गढ रलीआंमणो ॥ १० ॥
संभवनाथ वी (वि) राजे तेणें हांमे सही, पूजा रची जिन अंग कई (के) हरखसु उमहिं (ही)। मेटामांहि श्रावक धरमधोरी घणा,
तप जप क्रिया खरचवें नवि राखे मणा ॥११॥
संवत १८ (अढार) बारोतरि संभवनाथनी, आंगी रची अति प्रेम के नी (नि) रमलभावनी । केसर चंदन फुलपगर महकें घणा, कपु(पू)र घसी घनसारसुं करि (री) तिहां छांटणा ॥१२॥
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अप्रैल - २
- २०१५
ए पु (पू)जा जिनराजनि (नी) भवनी (नि)स्तारणी, नरक तणा दुख दोहग घाट नी (नि) वारणी । श्री जो (जी) तरत्न गुरु चरणकमल भावई नमी, राजरत्नमुनी (नि) भाखई कें पूजा मन गमी ॥१३॥
।। इति श्री उमेटामध्ये संभवनाथ वी (वि) राजमान तेहनो स्तवन संपूर्ण ॥
||लखी (खि) तं गलाल ॥ श्री शुभं भवतु ॥