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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SHRUTSAGAR 12 JULY - 2014 कृति विशे:- प्रस्तुत कृति १७३ कडीमां पथरारली छे. आखी कृतिमा ढाळ अने चोपाई बंधमां कृतिनी रचना थई छे. ढाळ क्रमांक अपायेल नथी. पण ढाळ अनुसार आठ ढाळनी आ रचना छे. रचनामा कविए पोतानी आवडतने कामे लगाडी कृतिने सुंदर ओप आपवानी पूरी तक लीधी छे. कविना वर्णननो स्पर्श वाचकने थया वगर रहेतो नथी. प्रसंगोचित कवितुं वर्णनसामर्थ्य कृतिनी उपादेयतामां वधारो करे छे. कृतिनी छेल्ली कडीमां कविए प्रहेलिका द्वारा करेलो वारनो निर्देश रचनामां चमत्कृतिनो अहेसास करावे छे. कर्ता विशे:- कृतिनी छेल्ली कडीओमां भळता उल्लेख अनुसार प्रस्तुत कृतिना कर्ता भानुचंद्र गणिना शिष्य देवचंद्र छे. कडीनी छेल्ली गाथओमा कविए स्वयं पोतानो उल्लेख करीने कृतिनी विगतोने पूर्ण करी छे, भानुचंद्र गणिवर एगना समयमा बहु ख्याति प्राप्त साधु पुरुष हता. शत्रुजयतीर्थनी यात्रानो वेरो भानुचंद्र गणिनी प्रेरणा अने महेनतथी बंध थयो होवाथी एमने शत्रुजयकरमोचन एवं बिरूद आपवामां आव्युं हतुं. एमनी साथे एमना शिष्य देवचंद्रजी पण आगवी प्रतिभा बळे विद्वद्जनोमां प्रिय हता. देवचंद्र गणि अने एमनी अन्य कृतिओना संबंधमां जाणवा माटे गुजराती साहित्यकोश मध्यकाळ (पेज नं. १८०), जैन गूर्जर कविओ भाग (भाग जो/पेज नं. २८७), हीरविजयसूरि रास, तेमज जैन परंपरानो इतिहास विगेरे ग्रंथो जोवा वाचकोने भलामण... प्रत परिचय:- प्रस्तुत कृतिनी प्रत आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिरमा क्रमांक ५७६५९नं,ना क्रमांक पर नोंधायली छे. प्रतनुं आलेखन सुंदर अने एकसरखी ढबे शुद्ध रीते थयुं छे. कुल प्रतना पत्र एकवीश छे. एमांत्रण कृतिनो समावेश करवामां आव्यो छे. प्रतमां आलेखायेली त्रणेय कृतिओ भानुचंद्र गणिना शिष्य देववंद्रजी महाराज द्वारा रचायेली छे. प्रतमां पत्र क्रमांक १ थी १०A सुधी नवतत्त्व रारा, १०० श्री १७A सुधी अत्रे प्रकाशित पृथ्वीचंद्र गुणसागर रास, अने १७A थी २१B सुधीमां शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटी रतवन, आलेखन थयुं छे. प्रतना लेखन संवत, प्रतिलेखक विगेरे कोई माहितीनो उल्लेख अत्रे करायो नथी. पण प्रतालेखनना आधारे कर्माथी नजीकना समयमा एटले के १७मी सदीमां लखायेली होवानी संभावना व्यक्त करी शकाय छे. पत्र परिमाण कुल २५.५०x११.५० छे. अने एमां कुल १४ लाईन छे अने एक लाईनमा ४१ जेटला अक्षरोनुं आलेखन थयु छे. कृतिगत दंड अने अंकस्थानो माटे लाल स्याहीनो उपयोग थयो छे. पत्रना मध्यभागे अक्षरालेखन विहिन चोरस तथा वापीकामय फुल्लिका छे. अक्षरो स्पष्ट अने बेठा घाटना सरळताथी उकेली शकाय एवा सुंदर छे. आ कृति अने एनी हस्तप्रतनी विगतो कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूचि भाग १४मां प्रकाशित थयेल छे. For Private and Personal Use Only
SR No.525291
Book TitleShrutsagar 2014 07 Volume 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai L Shah
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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