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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पृथ्वीचंद्र गुणसागर रास प्रणमुं भगति भगवति भारती, जे तूठी आपई शुभमति। जस सेवइं सुर नर भूपति, जेहनइं नामइं सुख संपति ।।१।। सारद शुभमति पूरी आस, आपो मुझनई वचनविलास । तुं सरसति कविजननी माय. सेवक उपरी करो पसाय ।।२।। क्ली समरु मनि मंत्र नवकार, चउदइंपूरवनुं जे सार। श्रीगु केरं पागी नान, बोलिशुं पृथवीचंद्र आख्यान 11३11 सीलवंतमांहि अतिनलो, चंद्र तणी परि जस निर्मलो। तारा रास सज्जन सांभलो, सीलवंत कहीइ गुणनिलो ।।४।। सील विना सहु असुहागणुं, सुणयो तेहनां ओठां' भणु । चंद्र विहूणी जिम रातडी, मूरिख साथि जिम मोठडी ।।५।। पति पाखइ प्रगदा जेहवी, नरपति विण नगरी तेहवी। महाव्रत पाखई जिग अणगार, वस्त्र विहूणा जिम शणगार ।।६।। भोजन घृत पाखइ जेह, लोवन पाखई मुख तिम कवु। धोटिक' वेग विहूणो जेम, मयगल" दंत विहूणो तेम । ७ ।। जल पाखद सरोवर जरयं, देव पाखइ ते देवल कस्यु। विनय विहूणो जेह यो शिष्य, जेहवो छाया पाखई वृष्य ।।८।। कंठ विहूणो गाइं गीत, सर विण वाणी कवइ कवीत्त । वेटा मोटा जिग गुणहीन, प्रताप पाखई भूपति दीन ।।२।। खिमा विहूणो जेहायो यति. लाज विहूणी जेहवी सती। प्रीति विहूणी जिम दंपती, लूण विहूणी तिम रसवती ।।१०।। पांख विहूणो जिम पंखीओ, पुण्य विना मानव दुखिओ कुल नवि शोभई विना आचार, सत्य विना तिम मुख आकार ||११|| लक्ष्मी पाखइं पुरुषप्रधान, पृथिवीमां न लहई बहुमान। तिम सील विना शेभा नवि लहई, एह अरथ श्रीमुखि जिन कहई ।।१२।। For Private and Personal Use Only
SR No.525291
Book TitleShrutsagar 2014 07 Volume 01 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanubhai L Shah
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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