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श्रुतसागर
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जुलाई २०१४
गुण अने ग्रंथोनी वा अनुभवना बळे एमना काव्यमां जणानी जोवा मळे एवा साधु कविओ खरेखर मध्यकाळनी शोभा समान छे.
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पृथ्वीचंद्रना परिणाम बदलाय छे यौवनवये, त्याग अने तपना विचार आवे छे. भोगववानी क्षणे छोडवानो विचार स्फुरे छे. विनाशीगां अविनाशीनी वात जाणी गयेलो पृथ्वीचंद्र वैराग्यवासित थाय छे. जीव ज्यारे वैराग्य भीनो बने छे, एना आत्माने संवेगनो पुनित स्पर्श थाय छे पछी जीवन आखुं बदलाई जाय छे. पृथ्वीचंद्र वैराग्य भीनो बनता स्वाभाविकपणे थती माता पितानी चिंता, पृथ्वीचंद्र साथे माता पितानो संवाद, आग्रहपूर्वक पृथ्वीचंद्रनुं आठ राजकुमारी सार्थ पाणिग्रहण, आठेय राजकुमारीने प्रतिबोध, अने राज्याभिषेक विगेरे घटनाओनी वात कविए चोवीश थी चोर्याशी कडीओमां सुंदर रीते रजु करी छे.
कविए दरेक घटनाओने एक सुंदर मजानुं रूपकाम कर्तुं छे. घटनाओनी भीतर उछळतो प्रचळ संवेग, वाचन मात्रथी पृथ्वीचंद्र अने एनी आसपासनी घटनाओमा अनुभवातुं एक अजब प्रकारनुं नर्तन, व्यवहार जीवनमां अपनावी शकाय अने समाधि अने समताने हस्तगत करी शकाय आधुं घणुं बधु आ कृतिगांथी स्पर्शवा मळे छे.
ज्यां जीवने नधी जवानुं त्यां कर्मों लई जाय एवी बीना पृथ्वीचंद्रनी जेग आपणा सहु साथे वने छे ए बातने खूब ज सारी रीते आगळना पद्योगां रजु कराई छे. पृथ्वीचंद्रना राज्याभिषेकनी वात जणावीने कविए पृथ्वी चंद्रना घरवासने माछी मारनी जाळमां पडेली माछली साथे, तो पारधीना पासमां फसायेला हरण साथै अने शिकारीए पकडेला गदगस्त हाथी साथे सरखावी, पृथ्वीच्द्रनी मनोस्थितिने सुंदर रीते शब्दांकित करी छे.
राजसभामा परदेशीनुं आगमन अने श्रेष्ठिपुत्र गुणसागरनी रजुआत आगळनी कडीओगां वाचवा मळे छे. देश देशांतरमां फरता करता जोवा मळेला कौतुकोनी वात पृथ्वीचंद्र परदेशीने पूछे छे अने एना प्रत्युत्तरमा परदेशी श्रेष्ठिपुत्र गुणसागरनुं आखु कथानक संभळावे छे. पृथ्वीचंद्र अने एमनी राणी, गुणसागर अने एमनी पलिओ अने एमना माता पिता विगेरे मळीने कुल चोपन आत्माओ भावधारानी शुभता अने शुद्धताना परिणामे केवळज्ञान पामे छे.
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आ प्रमाणे शंख राजा अने कलावतीना भवथी शरू थयेलो संबंध पृथ्वीचंद्र गुणसागरमा विराम पाने छे मित्रतानी क्षितिज उपर पृथ्वीचंद्र अने गुणसागर शाश्वतभावे एक थई जाय छे, ओगळी जाय छे.
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