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SHRUTSAGAR
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JULY - 2014
छे. अथवा संभावनाए पण पूरी छे के आ कथा प्रसंग एमने परंपराथी सांभळवा मळती कथाने आधारे रासनी रचना करी होय... रचनाना आधारने लईने रचनाकारे आ प्रकारनो कोई खुलासो कर्यो नथी.
आम तो आ कथानी शरूआत घणी लांबी छे. पृथ्वीचंद्र अने गुणसागर वच्चेनो संबंध पण बहु, जुनो अने पुराणो छे, पण रासकार तो अंतिम भवनी कथा - वस्तु रासमां गुंथे छे. प्रस्तुत कथा नायको बच्चे शंखराजा अने कलावतीना भवथी संबंध थाय छे. ए पछीना कुल एकवीश जेटला भवे अलग अलग रूपे बन्ने मळे छे. कुल एकवीर भवमांथी अग्यार भव मनुष्य पर्यायन छे. अने दश भव देव पर्यायना छे. मनुष्य गतिना कुल अग्यार भवो नीचे भुजव दर्शाव्या छे.
पति-पत्नी तरीके छ भव मित्र रूपे वे भव, भाई रूपे वे भव, अने पिता-पुत्र रूपे एक भव आम कुल अग्यार भवो आ रीते पसार कर्या बाद छेल्ला भवमां शंखराजानो जीव पृथ्वीचंद्र कुमार अने राणी कलावतीनो जीव श्रेष्ठिपुत्र गुणसागर तरीके जन्मे छे.
कृतिसार : कृतिनी शरुआतमां कवि श्रुतदेवी भगवती शारदाने प्रणाम, नमस्कार मंत्रनुं स्मरण अने गुरुदेवना आशीर्वाद ग्रहण करीने कृतिनो प्रारंभ करे छे. कवि त्रीजी कडीना अंते 'बोलीशुं पृथ्वीचंद्र आख्यान कही पोताना विषयनी वक्तव्यता स्पष्ट करे छे. कविए कृतिमां घणा स्थानो उपम अने अलंकारनो प्रचुर उपयोग कर्यो छे. तो दृष्टांतो द्वारा पोताना कथित विषयनी महत्ताने पण बहु सारी
ते स्पष्ट करी छे. कृतिनी चोथी कडीथी ज कवि पोतानी काव्यप्रतिभाने शब्दोमां उतारी आपे छे. शीयळ विनाना व्यक्तिनो आदर अने शीयळ वगरना व्यक्तिनी वास्तविकता कविए केटलाय उदाहरण द्वारा दर्शावीने वाचकना परिणामने शील पालनमा वधु स्थिर कर्या छे. तो साथे साथे कथानी साथै प्रवाहित औपदेशिक तत्त्वने पण असरकारक रीते रजु करायु छे.
चौदमी कडीथी कृतिमां पृथ्वीचंद्र अने एनी आरापासनी विगतोने आवरी लेवामां आवी छे. विनीतानगरीमां हरिसींह राजानी पद्मावती राणीनी कुक्षिए पृथ्वीचंद्रनो जन्म थाय छे. कविए राणीनी वात आवता ज श्रेष्ठ स्त्रीओना लक्षणो जणाव्या छे, कवि पोतानी प्रतिभाओथी पोताना काव्यने अमरत्व प्रदान करता होय छे, एक खीलेलुं फूल खुश्बु वेरीने खरी जाय एम.
मध्यकालीन जैन साहित्यकारोनी प्रतिभा विशे जाणवुं होय तो आवी कथा के रास कृतिओ द्वारा बहु सरळताथी परिचय हाथवगो करी शकाय एम छे. बधा ज
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