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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ मई - २०१४ निश्चित छे. आ पछी मने स्वर्गलोकनी प्राप्ति थाय अथवा सत्कर्मना फळरूपे मने परलोकमां सुख मळे. परंतु जीवनपर्यंत आकुळव्याकुळ करनारी आशा जीवनना अंतभागमां पण पीछो छोड़ती नथी अने मनुष्य भवने बगाडे छे. आवी ठगारी इच्छाओ-आशाओ कंई कामनी खरी? परंतु घणा माणसो आशाना वादळ पाछळ सफळतानो सूर्य जुए छे. केमके धर्म भावनाओ अने धर्म क्रियाओनी आशा प्रशंसनीय छे. कारण के आ आशा मानवीने तेना लक्ष्य सुधी लई जाय छे. आ आशा-इच्छानो संबंध मोक्ष सुधी रहे छे. परमात्मा साथे जोडायेल आशा खराब नथी होती. मोक्षनी आशा उपर कोई दूषण लागी शकतुं नथी. मोक्षनी आशा ए संजीवनी छे. केटलाक साधकोनो मत छे के अंतमां मोक्षनी इच्छा पण छोडवी पड़े छे. वास्तविक रीते जोईए तो मोक्षनी इच्छा छोडवी पडती नथी परंतु कोईक चरमसीमा सुधी पहोंचीने पोतानी मेळे छूटी जाय छे. मोक्षनी आशानो त्याग करनार दानपुण्यनी आशानो त्याग पण करी शके छे. अंते आ ज भावना होवी जोईए के आवी आशाओ उच्च कक्षाए पहोंचता आपोआप पोतानी मेळे छूटी जाय छे. जेमके साधु बन्या पछी द्रव्यपूजा वगैरेनी इच्छा छूटी जाय छे. केटलाक लोको एवा छे के जेमने कांई न जोईए. पछी ते सोनामहोर होय के विश्वनुं साम्राज्य पण होय, एमने ए तृणवत् भासे छे. आगामी जीवन माटे विचार्यु होत तो कंइ सारं थात! आ जन्ममां कंइ न कर्यु, कंइ मेळव्यु नहि तेथी भावि जन्ममा कंइ मळवानी तक नथी. आशाना त्यागनो अर्थ एवो कदापि थतो नथी के निराश थइ जq. निराशा आशानी दास करतां वधारे भयंकर होय छे. तमे जीवनमां गमे तेटला निष्फळ थइ जाओ परंतु निराश थशो नहि. प्रतिक्षण आशाना किरणो तमारी साथे रहेवां जोइए. परंतु उत्तम कार्योनी आशा करजो. खराब कार्योनी आशा राखनार एक दिवस पोते ज खाली थइ जाय छे. जाते ज कंइ करी छूटवानी, कंइक थवानी अने आत्मोन्नतिनी आशा राखवी जोईए. जो मानवी विश्वना कल्याणनी कामना करे, कपिलनी आशाए तेने सम्राटना साम्राज्य सुधी पहोंचाडी दीधो. ज्यारे त्यां पण तेने तृप्ति थइ नहि त्यारे ते आकांक्षा रहित थइ आत्मतृप्ति थइ केवळज्ञानी बनी गया. आ प्रमाणे जीवन मांगल्यनी साधना माटे शुभ भावनाओ-आशाओगें अस्तित्व विकासन ज कारण छे, विनाशनं नहि. इच्छाओनी अनंतता ए दुःखनु मुळभूत कारण छे, इच्छाओनो निरोध सुख छे. सुखनी इच्छा दुन्यवी दृष्टिए पुष्कळ धन कमाईने एशआरामनुं जीवन जीवq एटले के दुनियानी दृष्टि धन उपर छे. ज्ञानीओनी दृष्टि धर्म उपर छे. दुनियानी दृष्टि वैभव पर छे ज्यारे ज्ञानीओनी दृष्टि विरति उपर छे. धन होय ते महान नहि परंतु For Private and Personal Use Only
SR No.525289
Book TitleShrutsagar Ank 040
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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