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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - ४० माणसना मनमां ईश्वरे अगणित शक्ति मूकी छे. प्रकाशनी गति सेकंडे १८६००० माइलनी छे तेनाथी पण वधु गतिमान अने शक्तिशाली मन छे. तेने योग्य रीते समजीने तेनी पासे विवेकपूर्वक काम लेवू जोइए ए ज तेनी चावी छे. __जे आशाओना दास होय छे, ते समस्त संसारना दास होय छे. जे आशाओने पोताना दास बनावी ले छे, संसार तेनो दास बनी जाय छे. शक्तिशाली मनने तेनी इच्छाओनी शृंखलामांथी बहार काढवानुं अने तेने शमन करवानी कळा मनुष्यमां आवी जाय तो, शक्तिशाळी मनने संसारना धार्मिक-सामाजिक अने शैक्षणिक कार्योमा जबरजस्त उपयोगमा लइ शकाय. ___ मनुष्य जातने बरबाद करनारी आशा ए महामारी छे, राक्षसी छे. आशा झेरनी वेल छे, जन्म-मरण- कारण पण आशा छे. सर्व दुःखोनी जनेता आशा छे. जो जीवननी आशा अमृत बनी शके तो ते झेर पण बनी शके छे. एक कविए कह्यु छ : तृष्णा न जीर्णा, वयमेव जीर्णाः | तृष्णा क्यारेय पण घरडी थती नथी, जीर्ण थती नथी, परंतु मनुष्य जीर्ण थई जाय छे. हकीकतमां जोइए तो जीवन जीर्ण थतानी साथे आशाओ पण जीर्ण थवी जोईए, परंतु आनाथी विपरीत ज थाय छे. अधिकनी आशा असाध्य रोग छे, आशाओथी मुक्ति रोग मुक्ति छे. अधिक आशाना चक्करमा भ्रमरनो केवो विनाश थाय छे तेनुं नीतिशतकना एक श्लोकमां आपेलुं दृष्टांत चित्तने हलबलावी नाखे तेवू छे. रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातम् भारवानुदेष्यति हसिष्यति पंकजश्रीः । इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे, हा हन्त! हन्त! नलिनी गज उज्जहार ।। अर्थात् - रात चाली जशे, सुंदर प्रभात थशे. सूर्य उदय पामशे, कमळनी शोभा हसी उठशे. ए प्रमाणे ज्यारे कमळना गर्भमा रहेलो भ्रमर विचारे छे त्यारे - अरे, अफसोस, अफसोस... हाथी कमळलताने उखेडीने खाई गयो. सूर्यथी विकास पामनार कमळमां संध्या समये पांखडीओनी वच्चे बंध भमरो कमळनी सुगंधीना आकर्षणमा मग्न बनी जाय छे. ते पोते कमळमां पूराई जाय छे. तेणे धार्यु होत तो कमळने तोडीने ते बहार आवी शक्यो होत! परंतु ते कमळनी सुगंधीमां आशक्त बनीने बहार आववानुं विचारतो नथी. परंतु सूर्योदय थतां सुधी कमळने विकसित थवानी प्रतीक्षा करे छे. ते भमरो मधुर स्वप्नोनी लहेरमां विहरतो हतो तेवामां ज हाथी आवीने भमरा साथेना कमळने खाई गयो. भविष्यनी इच्छाओ अने आशाओना खोटा महेलोनां स्वप्नो सेवीने मानवी पोतानी परलोकनी यात्राने जमीनदोस्त करे छे. मरण पथारीए पडेल व्यक्तिनी एक मात्र इच्छा-आशा होय छे के मृत्यु For Private and Personal Use Only
SR No.525289
Book TitleShrutsagar Ank 040
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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