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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org इच्छाओ अनंत छे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कनुभाई ल. शाह प्रभु वीरे कह्युं छे : 'इच्छा हु आगाससमा अनंतया' - इच्छाओ आकाशनी जेम अनंत छे. आकाशने कोई सीमा नथी, कोई किनारो नजरे पडतो नथी. तेवी ज रीते इच्छाओनो कोई किनारो नथी, कोई सीमा नथी. आकाशनुं एक निश्चित क्षितिज देखाय छे. आगळ चालतां ते क्षितिज पण आगळ वधतुं ज जाय छे, ए तेज इच्छाओनुं क्षितिज खूब ज नजीक देखाय छे परंतु मानवी ज्यारे इच्छाओना क्षितिज सुधी पहोंची जाय छे. त्यारे तेने नवी इच्छाओ नजरे पडे छे, आ प्रमाणे इच्छाओनी पूर्ति थतां नवी इच्छाओ थया ज करे छे. मानवीना मनमां एक इच्छा जन्म ले छे. ते इच्छा पूर्ण थतां ज बीजी इच्छाओनो जन्म आपो-आप ज थई जाय छे. एक इच्छा परिपूर्ण थतां बीजी इच्छा, त्रीजी इच्छा, चोथी इच्छा एम इच्छाओनी अनंत हारमाळा अस्तित्त्वमां आवती जाय छे. पशुओ आवा आशाओना हवा महेल चणता नथी. परंतु मनुष्य अचेतन जेवो बनीने आशाओना महेल चणे छे, ज्यारे आ महेल रेतीना घरनी जेम धराशायी थई जाय छे त्यारे ते दुःखी थाय छे. मानवी आशाओना चक्करमा मानव जीवनने बरबाद करी नाखे छे. मानवी बुद्धिशाळी प्राणी होवा छतां आशा - इच्छा-तृष्णाना चक्रव्यूहमां एवो फसाय छे के तेनुं सर्वस्व नष्ट थवा छतां पण चेततो नथी. कुदरतनो महान नियम पण जीव भूली जाय छे. प्रत्येक क्रियाने कर्मने प्रतिक्रिया होय ज छे. तमे तमारा माटे कंईपण मेळववा कर्म करो अने मेळवो, त्यां ज बात पूरी थती नथी. आ वस्तु मेळववा पाछळ जे कावा - दावा कर्या ते कर्मनुं प्रतिक्रियारूप परिणाम आवे अने नुकशान थाय, बीमारी आवी पडे त्यारे आवुं केम थयुं ? एवो प्रश्न आपणने सहेजे थाय छे. मनुष्यने दुःख अकस्मात आवी पडतुं नथी. कुदरतना नियमानुसार ज आवे छे. ते नियमनुं ज्ञान माणस प्राप्त करे, समजे अने समजीने जीवन जीवे तो दुःख तेनाथी दूर रहेशे अने नवुं दुःख आवशे पण नहि. धन, धरा अने धणियाणी ज जीवनमां सर्वस्व नथी, सिवाय बीजुं पण घणुं समजवा जेवुं छे अने तो ज तमे आ त्रणे 'ध' कारने सुखपूर्वक भोगवी शको, अन्यथा नहि. माणस धारे तो सर्व इच्छाओने संतोषी, तेथी उपर पण जई शके अने प्रयाणकाळे तद्दन शांत अने ईश्वरमय बनीने तेनामां भळी जई शके. पण ते माटे तेणे सौ प्रथमथी ज जीवन जीववानी कळा जाणीने तेनुं अनुसरण करवुं जोईए. For Private and Personal Use Only
SR No.525289
Book TitleShrutsagar Ank 040
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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