________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रुतसागर - ४०
संघभगति वरसे ते च्यार, जिनपूजा कीजें त्रण वार । मुनि पांचसेने दे आहार, पडिक्कमणा बे करतो सार ।।७।। साढा बार ते यात्रा करें, से–जे अणसण उचरे | आयु थोडुं जांणी करी, वांणोतरने लखतो करी ।।८।। पूंन्य ठांमें मूझ करज्यो धन्न, अन्य थानकें करज्यो जतन्न । त्रिणस्यकोड्यने तहोत्तर कोडि, लाख सीतोतर उपर जोडि ।।९।। वली उपर द्रव्य दोय हजार, जईन कारज खरचे धन सार। वस्तुपाल पाम्यो जसवाद, आबूगढ कीधों प्रसाद ।।१०।। बारकोड्यने पन्नलाख, तिहां खरच्यां केरी भाख | देहरें आलीया सोहामणा, देरांणी जेठांणी तणा ||११|| नव-नव लाख पीरोजी जोय, खरचें घरनी नारी दोय । नेमनाथनें जोहारी करी, त्रिण भुवनें हुआ छे अती(ति)रूली ।।१२।। एकसो आठ मण पी(पि)त्तल तणि(णी), रिखभदेवनी प्रतिमा सू(सु)णी। परिकर सहित सूंदर आकार, जुहारि(री) सफल करस्यों अवतार ||१३|| बत्रीस वरसनु आउखु जेह, स्वर्गाधिक सू(सु)रवर नरपती(ति) पांमे तेह । छंद भावे भणस्ये जेह, सुख संपत पांमे तेह ||१४||
॥ इति श्रीवस्तुपाल-तेजपाल संबंध छंद संपूर्णम् ।।
ज्ञानमंदिरनु आगामी प्रकाशन * चित्तप्रदेशमा अनुभवाता संक्लेशना पावकने ठारी आपतुं शब्दनीर ___ एटले समाधान... * कर्मविज्ञान अने कर्मसिद्धांतनी पायानी समज आपतो शब्दसंवाद
एटले समाधान... प्रियदर्शननी प्रशांत कलमे आलेखायेलुं जीवनना साचा रहस्योने प्रगट करतुं पुस्तक एटले...
समाधान लेखक : प. पू. आचार्यदेव श्री भद्रगुप्तसूरीश्वरजी म. सा.
For Private and Personal Use Only