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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाण्डुलिपि : एक परिचय डॉ. उत्तमसिंह भारतीय संस्कृति व उसका साहित्य श्रुतपरंपरा से संरक्षित होता हुआ पाण्डुलिपियों के माध्यम से सुरक्षित रहा है। छापेखाने के विकास से पूर्व स्वाध्याय व ज्ञान-प्रसार का आधार ये पाण्डुलिपियाँ ही थीं। हमारे आचार्यों, मनीषियों, साधु-साध्वियों एवं श्रुतसेवी विद्वानों ने धार्मिक प्रभावना एवं उन्नत जीवन-निर्माण हेतु सहस्रों ग्रन्थ ताडपत्र, भोजपत्र, कपडे एवं कागजों पर लिखकर भारतीय ज्ञानपरंपरा को सदियों से जीवित एवं सुरक्षित रखा है। इन पाण्डुलिपयों को अलग-अलग प्रदेशों में विविध नामों से जाना जाता है। कहीं इन्हें हस्तप्रत कहा जाता है तो कहीं मातृका, पोथी, पुस्तक, प्रत, पाण्डुलिपि, हस्तलेख, मक्तुताज, कृति, ताळितोळ, मेन्युस्क्रिप्ट आदि नामों से जाना जाता है। एक समय ऐसा भी था जब हिन्दुस्तान को सोने की चिडिया कहा जाता था, अर्थात हिन्दुस्तान में सर्वाधिक धन-संपदा थी। उस समय इन पाण्डुलिपियों को भी प्रमुख संपदा के रूप में गिना जाता था। इसी ज्ञाननिधि के कारण हिंदुस्तान को जगद्गुरु की पदवी प्राप्त हुई। । उस समय श्रेष्ठ लहियाओं से एक ही पाण्डुलिपि की कई प्रतिलिपियाँ तैयार करवाकर विद्वानों एवं स्वाध्यायियों को अध्ययनार्थ उपलब्ध कराई जाती थीं। यही कारण है कि आज एक ही ग्रन्थ की कई प्रतियाँ विभिन्न स्थानों पर प्राप्त हो जाती हैं। विभिन्न पाण्डुलिपि संग्रहालय भी इसी प्रवृत्ति के परिणाम हैं। पाटण, जैसलमेर, नागौर, जयपुर, बीकानेर, सूरत, छाणी, लींबडी, अहमदाबाद, कोबा, वडोदरा, पूना, इलाहाबाद, वाराणसी, पटना, तंजावुर, रजा-रामपुर आदि अनेक स्थानों के पाण्डुलिपि संग्रहालय भारत की सांस्कृतिक निधियाँ हैं। हमारे पूर्वजों, साधु-साध्वियों एवं श्रेष्ठियों ने इन संग्रहालयों की सुरक्षा करके संस्कृति के संरक्षण में जो योगदान दिया है वह अविस्मरणीय और आगे आनेवाली पीढियों के लिए एक प्रेरक उदाहरण है। कहा जाता है कि कलिकाल-सर्वज्ञ हेमचंद्राचार्य ने हैमशब्दानुशासन की प्रतिलिपियाँ तैयार कराने हेतु चारसौ लहियाओं को एक साथ बैठाकर चारसौ प्रतियाँ तैयार कराईं और हिंदुस्तान के विविध भण्डारों में रखवा दी। जिसके कारण इस ग्रन्थ की एकाधिक प्रतिलिपियाँ आज भी ग्रन्थागारों में आसानी से मिल जाती हैं। इसी प्रकार रामायण, महाभारत, गीता, अभिज्ञान शाकुन्तल आदि For Private and Personal Use Only
SR No.525289
Book TitleShrutsagar Ank 040
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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