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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर - ३८-३९ ४१ *विशेषतः संयुक्ताक्षर लिखते समय जिस अक्षर को पहले बोला जाये उसे ऊपर और बाद में बोले जाने वाले अक्षर को उसके नीचे लिखा जाता था । अर्थात् ब्राह्मी लिपि में संयुक्त अक्षर एक-दूसरे के नीचे लिखे जाते थे। ग्रंथ लिपि में भी इसी पद्धती का अनुसरण किया गया है। प्राचीन-नागरी-लिपिबद्ध पाण्डुलिपियों में भी कुछ संयुक्ताक्षर इसी प्रकार ऊपर से नीचे की ओर लिखे हुए मिलते हैं। * भारतीय प्राचीन इतिहास और संस्कृति का अध्ययन करने वाले शोधार्थीयों के ___ लिए यह लिपि सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शक की भूमिका अदा करती है। ब्राह्मी लिपि की वर्णमाला : ___मौर्य-वंशी सम्राट अशोक के शिलालेखों में उत्कीर्ण इस लिपि में प्रयुक्त स्वर एवं व्यंजन वर्ण निम्नवत हैं स्वर वर्ण लेखन प्रक्रिया उ (ऊ ऋ लु)! ए (ऐ) ओ (औ अं अः विदित हो कि ब्राह्मी लिपिबद्ध शिलालेखों में 'ऊ, ऋ, ऐ, औ' आदि दीर्घ स्वर वर्णों का प्रयोग नहीं हुआ है। अतः इन वर्गों के लिखित साक्ष्य नहीं मिलते हैं। लेकिन इन वर्गों के ह्रस्व स्वरूप का प्रयोग हुआ है । अतः इन ह्रस्व वर्गों के आधार पर दीर्घ वर्गों को निम्नवत् लिखा जा सकता है त्र औ . . . त्यंजन वर्ण लेखन प्रक्रिया क For Private and Personal Use Only
SR No.525288
Book TitleShrutsagar Ank 038 039
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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