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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८ मार्च-अप्रैल - २०१४ कात्य परिचय : धुलेवा बारमासा काव्य १४ गाथा में रचित है। प्रथम और अंतिम गाथा में मंगलाचरण है। मध्य की बारह गाथा में प्रकृति वर्णन के साथ-साथ प्रभु स्तवना द्वारा परमात्मा की अद्वितीय महिमा गायी है। यह भक्त की भक्ति का प्रेरणास्पद व ज्वलंत उदाहरण है। प्रस्तुत् बारमासा में भक्ति के संदर्भ में प्राकृतिक सौंदर्य का नामोल्लेख हुआ है। उदा. फाग खेलवो, वइसाखे फुली वनराई, मेघ घणां गाजे, श्रावणे वरसे अति सारो, बापइ मोर दादुर प्यारो। ऋतुकाव्य के अनुरूप प्रकृति के प्रयोग से काव्य की शोभा में अभिवृद्धि हुई है। यहाँ शृंगाररस ने भक्ति-शृंगार का स्थान लिया है। प्रभुभक्ति का स्नेह भक्तिरस के दृष्टांत को पूर्ण करता है। ऋतु काव्य की परंपरा में यह अभिनव रचना काव्य और भक्ति के समन्वय से आस्वाद्य है। प्रस्तुत् कृति सरलार्थ सहित प्रकाशित की जा रही है। कवि ऋषभदासकृत धुलेवाजी बारमासा श्रीसद्गुरु प्रणमी पायां, माता मरुदेवीनां जाया। ऋषभजी धुलेवा नगररायां, विषय कषाय कपटनें तजीए, जगतगुरु जिनवरने जपीए ||१|| प्रस्तुत गाथा में मंगलाचरण के साथ-साथ धुलेवा नगर के राजा, मरुदेवी माता के पुत्र श्रीऋषभदेवजी का संक्षेप में परिचय दिया गया है। जिनवर की स्तवना करने से अशुभ भावों का निकंदन होता है। यह कहकर कवि ने काव्यप्रयोजन का हेतु भी स्पष्ट किया है। कार्तिके केसरीयो मीलसे, के मारा जनमजरानां दुख हरसे। के मारा मनवंछीत फलसे, जगतगुरु जिनवरने जपीए ।।२।। कविश्री ने बारमासा का प्रारंभ कार्तिक महिने से किया है, क्योंकि कवि ऋषभदासजी गुजराती कवि हैं और गुजराती का नया वर्ष कार्तिक मास से प्रारंभ होता है। प्रभुदर्शन से अजर-अमर स्थान प्राप्त होगा और मन की अभिलाषाएँ पूर्ण होंगी। For Private and Personal Use Only
SR No.525288
Book TitleShrutsagar Ank 038 039
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiren K Doshi
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size3 MB
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