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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुरुषार्थ चतुष्टय : जैनदर्शन के परिप्रेक्ष्य में डॉ. उत्तमसिंह ___ 'पुरुषार्थ चतुष्टय' की अवधारणा विशेषतः हिंदू मूल्य-दर्शन की आधारशिला है। यह जीवन की वह थाती है, जिसके माध्यम से व्यक्ति संसाररूपी रंगमंच पर अभिनय भी कर सकता है और संसार-सागर से आत्यन्तिक विश्राम भी ले सकता है। यह प्राचीन भारतीय संस्कृति का तेजोदीप्त भास्कर है। जिससे व्यक्ति स्वयं आलोकित तो होता ही है साथ ही साथ अखिल ब्रह्माण्ड को भी प्रकाशित करता पुरुषार्थ शब्द दो शब्दों के योग से निष्पन्न हुआ है- पुरुष+अर्थ। यहाँ पुरुष का तात्पर्य संसार के सबसे अधिक विवेकशील प्राणी से तथा अर्थ का तात्पर्य चरम लक्ष्य से है। अतः पुरुषार्थ का अर्थ हुआ संसार के सबसे अधिक विवेकशील प्राणी का चरम लक्ष्य । अब प्रश्न उठता है कि जीवन का चरम लक्ष्य क्या है ? समाधान हमें सुख के रूप में मिलता है। विचारकों ने दो प्रकार के सुखों को स्वीकारा है- भौतिक और आध्यात्मिक। भौतिक सुख के अन्तर्गत सांसारिक आकर्षण और ऐशो-आराम की सामग्री मानी गई है तो आध्यात्मिक सुख के अन्तर्गत त्याग और तपस्या । भौतिक अथवा लौकिक सुख के अन्तर्गत अर्थ और काम हैं तो आध्यात्मिक अथवा पारलौकिक सुख के अन्तर्गत धर्म और मोक्ष हैं। पुरुषार्थ में भौतिक और आध्यात्मिक दोनों ही तत्त्व निहित हैं। इसके अन्तर्गत मनुष्य लौकिक उपभोग के साथ धर्म का अनुसरण करते हुए ईश्वरोन्मुख होकर मोक्ष को प्राप्त करता है। अतः भारतीय जीवनदर्शन इन दोनों प्रवृत्तियों का संतुलित, सम्मिलित और समन्वित स्वरूप है। पुरुषार्थ को परिभाषित करते हुए जैन संस्कृति में कहा गया है- 'पौरिषं पुनरिह चेष्टितम्'। तात्पर्य यह है कि मनुष्य यदि अपना प्रयोजन (जो मोक्ष है) प्राप्त करना चाहता है तो उसे इसके लिए स्वयं प्रयत्न करना होगा। इसके लिए किसी प्रकार की दैवीय सहायता उसे उपलब्ध नहीं है। इस आदर्श की प्राप्ति का एक ही मार्ग है कि इसे ठीक उसी तरह प्राप्त किया जाय जैसे अर्हतों, ऋषियोंमुनियों ने प्राप्त किया है। इस प्रकार जैनदर्शन में पुरुषार्थ का आशय मानवचेष्टा से है- जिसमें व्यक्ति For Private and Personal Use Only
SR No.525278
Book TitleShrutsagar Ank 2013 05 028
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMukeshbhai N Shah and Others
PublisherAcharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba
Publication Year2013
Total Pages36
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size2 MB
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