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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १५. कृति की सूचनाओं के साथ ही प्राचीन हस्तलिखित प्रत के लेखक, लेखनस्थल, लेखनवर्ष, उसकी शुद्धता, हस्तप्रत की दशा आदि एवं अन्य ढेर सारी लाक्षणिकताओं के आधार पर विद्वान योग्य हस्तप्रत का संशोधन आदि के कार्य हेतु शीघ्रता व सुगमता से चयन कर सकते हैं. यथा- किसी विद्वान को विक्रम संवत् १५०० के पहले की लिखित भगवतीसूत्र की चूर्णि की हस्तप्रत चाहिए जो कि संशोधित हो व टिप्पणियों से युक्त हो एवं उसकी दशा जीर्ण न हो तो उन्हें इस तरह की इच्छित हस्प्रतों की सूची मिल सकती है. चाहे वह किसी भी ज्ञानभण्डार / ग्रंथालय में क्यों न हो. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६. यह तो एक झलक मात्र है. इनके अलावा भी अन्य अनेकानेक तरीकों से बहुविध सूचनाएँ आसानी से प्राप्त की जा सकती है. साथ ही और भी अन्य सुविधाएँ उपलब्ध कराने के प्रयास किए जा रहें हैं जैसे कि किसी वर्ष में प्रकाशित किसी सामयिक / Periodical की सूचना या उसमें प्रकाशित / समीक्षित किसी कृति की सूचना आदि. अभी तक लगभग ५४,९०२ हस्तलिखित ग्रंथों की प्रविष्टि कम्प्यूटर पर हो चुकी है तथा ३८,२०५ प्रतों के साथ ७२,८०० कृतियों की सूचना कम्प्यूटर पर उपलब्ध की जा चुकी है. इसी प्रकार ८६,००० पुस्तकों की सूचनायें कम्प्यूटर पर एन्ट्री की जा चुकी है. इनके व्यवस्थापन एवं रखरखाव के लिए उपयोगितानुसार २५ विभाग बनाये गये हैं. सभी हस्तलिखित ग्रंथों एवं मुद्रित पुस्तकों की सुरक्षा के लिए उनके फ्यूमिगेशन करने की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है. जिससे कीटादि तथा वातावरणजन्य दोष से इस बहुमूल्य निधि की रक्षा हो सके. ग्रंथ संग्रहण एवं संशोधनयुक्त इस विशालकाय जटिल कम्प्यूटरीकरण के कार्य को आगे चल कर बृहत् जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश के रूप में विकसित करने की योजना है. इसी के तहत जैसलमेर, पाटण, खंभात एवं लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर - अहमदाबाद, भाण्डारकर प्राच्यविद्या मन्दिर-पूना आदि के ताड़पत्रीय व अन्य विशिष्ट ग्रंथों की विस्तृत सूची कम्प्यूटर पर ली जा चुकी है (हमारे लिये गौरव का विषय है कि जैसलमेर भंडार संबंधी यहाँ उपलब्ध सूचनाओं का उपयोग पूज्य मुनिराज श्री जंबूविजयजी ने भी जैसलमेर भंडार को व्यवस्थित करते समय एवं स्केनिंग के कार्य के समय किया था. ) एवं अन्य विशिष्ट भंडारों की सूची भी कम्प्यूटर पर लेने का कार्य क्रमशः जारी है. साथ ही अनेक भंडारों के विशिष्ट ग्रंथों की माइक्रो-फिल्म एवं जेरॉक्स नकलें भी यहाँ पर एकत्र की गई हैं. इस कार्य के पूरा होते ही प्रायः समग्र उपलब्ध जैन साहित्य एवं साहित्यकारों की सूचनाएँ एक ही जगह से उपलब्ध हो सकेगी. वैसे आज भी जैन साहित्य एवं साहित्यकारों के विषय में इस संस्था में जितनी सूचनाएँ उपलब्ध हैं वे अन्यत्र कहीं भी नहीं है. चूँकि यह ज्ञानमंदिर जैनों की नगरी अहमदाबाद के एकदम समीप स्थित हैं अतः पूज्य साधु-साध्वीजी म. सा., विद्वद्वर्ग एवं सामान्य श्रद्धालुजन भी इन सूचनाओं का महत्तम मात्रा में उपयोग कर रहें है. भारत के सुदूर क्षेत्रों के साथ ही विदेशों से भी विद्वानों एवं संशोधकों का यहाँ तांता लगा रहता है. साथ ही यह प्रयास भी किया जा रहा है कि और भी ज्यादा लोग यहाँ की सूचनाओं / सुविधाओं का उपयोग करें. विदेशी भारतीयों हेतु महत्वपूर्ण उपलब्ध सूचनाओं का संकलन कर इन्टरनेट पर रखने की भी योजना है. अपनी इस प्राचीन धरोहर को सुसंरक्षित करने का यह कार्य अत्यंत ही श्रमसाध्य है एवं इस कार्य के वर्षों तक जारी रहने की संभावना है. उदाहरण के लिए अस्त-व्यस्त हो चुके बिखरे पन्नों वाले ग्रंथों के पत्रों का परस्पर मिलान कर के उन्हें पुनः इकट्ठा करने का प्राथमिक कार्य ही पंडितो का बहुत सा समय एवं श्रम मांग लेता है. इसके बाद संशुद्ध रूप से सूचीकरण हेतु हस्तप्रत प्रोजेक्ट से संबद्ध लगभग आठ विविध प्रक्रियाएँ होती है. इतने विशाल पैमाने पर इस तरह का बहूपयोगी कार्य सर्वप्रथम बार ही हो रहा है. यह कार्य ज्यों-ज्यों आगे बढ़ता जाएगा, त्यों-त्यों जैन साहित्य के संशोधन एवं अभ्यास के क्षेत्र में एक नए युग का उदय होता जाएगा. १० For Private and Personal Use Only
SR No.525260
Book TitleShrutsagar Ank 2000 01 010
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain, Balaji Ganorkar
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2000
Total Pages16
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size1 MB
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