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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर, श्रावण २०५५ ६ और दो बजते ही बरसात रूक गई. एक मिनट में सारे बादल हट गये. सूर्य देवता प्रचंड ताप लेकर पुनः दृश्यमान होने लगे और २.०५ के समय सूर्य किरणें प्रासाद शिखर से होकर भगवान महावीर देव के मुख कमल स्थित भालतिलक के बराबर केन्द्र में शोभायमान हीरों को हजारों किरणों ने देदीप्यमान कर दिया. उपस्थित सैकड़ों भाविकों की महेच्छा परिपूर्ण होते ही परमात्मा के जयनाद के साथ अनेकशः नारे गुंजायमान हो उठे. वाचक बन्धुओं को याद रहे कि यह प्रसंग इसलिये यावच्चन्द्र दिवाकरौ किया गया है कि इसी दिन इसी समय पूज्यपाद, गच्छाधिपति सच्चरित्र चूड़ामणी आचार्य भगवन्त श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी महाराजा के पार्थिव देह का अग्नि संस्कार किया गया था. उन पूज्य युगमहर्षि द्वारा जैन शासन पर किये गए अनगिनत उपकारों को जीवन्त रखने हेतु समुचित प्रयासों से यह अद्भुत घटना प्रतिवर्ष होती रहती है. इस प्रसंग पर पधारे हुए सभी यात्रालुओं का आराधना केन्द्र के परिसर में सुन्दर स्वागत किया गया. साधर्मिक भक्ति के रूप में लड्डु • और नमकीन की प्रभावना की गई एवं आश्चर्य की बात यह है कि जब प्रसंग सुख शान्ति से निपट गया, लोग अपने-अपने स्थान चले गये कि तुरन्त जोरदार बारिश शुरु हो गई. शुभविचार - गंगाजल नीच विचारों का हमेशा के लिए परित्याग करना हो तो शुद्ध विचारों में ही रमण करना चाहिए अहर्निश A - श्रीमद् बुद्धि सागरसूरिजी नियमित चिन्तन करने की आदत डालनी चाहिए. मन ही मन असीम विचार करते रहने से मस्तिष्क को नुकसान पहुँचता है. प्रायः मानसिक उच्चता वृद्धिगंत हो, ऐसे विचार करते रहने से शुभ संस्कारों में वृद्धि होती है. मैत्री आदि भावना को निरंतर अपने मन में संजोए रखने से आत्मिक शुद्धि होती है. सर्वप्रथम रजोगुण व तमोगुण के विचारों को मन में से सर्वस्वी निकाल, सात्विक गुणों से उसे ठसाठस भर देना चाहिए. वैसे ही सात्विक विचार करने की आदत डालने से रजोगुण व तमोगुणात्मक विचारों का सहज में ही नाश होता है. सुविचार के कारण कुविचार स्वयं नाश हो जाते हैं. चिंतनीय विचारों को हर्ष के विचारों में तब्दील करना चाहिए और अस्थिर विचारों को स्थिर अपवित्र प्रेम के विचारों को पवित्र प्रेम के विचारों में परिवर्तित कर देना चाहिए. कहने का तात्पर्य यह है कि नीच विचारों का हमेशा के लिए परित्याग करना हो तो अहर्निश शुद्ध विचारों में ही रमण करना चाहिए. उच्च विचारों में व्याप्त मन प्रायः उच्च लेश्या के विचारों का अभ्यास करने में समर्थ सिद्ध होता है और फिर एक बार शुद्ध विचारों का अभ्यास दृढ़ हो जाने पर अशुद्ध विचारों का एकाएक प्रवेश होना प्रायः असम्भव है. शुद्ध विचारों की शक्ति बढ़ जाने पर उसके मुकाबले अशुद्ध विचारों का जोर टिक नहीं सकता. For Private and Personal Use Only हर पल व हर क्षण मन में किस प्रकार के विचार उत्पन्न होते हैं, उसकी पूरी सावधानी बरतनी चाहिए और कौन सा विचार किस कारण उत्पन्न हुआ है, उसका ख्याल रखना चाहिए. क्योंकि पश्चानुपूर्व से कैसे-कैसे विचारों की उत्पत्ति हुई है, इसे जानने ...आत्मसात् करने का अभ्यास करने पर उपयोग की वृद्धि होती है. नल का पानी जितना लेना हो उतना ले सकते है. ठीक उसी तरह मन को नल का स्वरूप प्रदान कर करने योग्य विचार ही करना चाहिए.
SR No.525259
Book TitleShrutsagar Ank 1999 09 009
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoj Jain, Balaji Ganorkar
PublisherShree Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year1999
Total Pages16
LanguageGujarati
ClassificationMagazine, India_Shrutsagar, & India
File Size1 MB
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