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श्रुत सागर, चैत्र २०५४
किं कण्ठाभरणादिभिर्बठरयत्यात्मानमन्यैरपि
श्रूयन्ते तावदर्थ मधुरा श्रीसिद्धहेमोक्तयः।। (भाई! यदि अर्थमधुर सिद्धहेमशब्दानुशासन के वचन सुनाई दे तो पाणिनि का प्रलाप बन्द हो जाने दो, कातन्त्र व्याकरण रूपी गुदड़ी को नगण्य मानो, शाकटायन व्याकरण के कटु वचनों के अर्थ मत निकालो,. क्षुद्र चान्द्र व्याकरण का क्या उपयोग है और कण्ठाभरणादिक अन्य ग्रन्थों से अपनी आत्मा को किस लिये जड़ बनाते हो?)
देववाणी संस्कृत वस्तुतः अधिकांश भाषाओं की उत्पत्ति का आधार है. हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर रूप प्राचीन साहित्य अधिकांशतः संस्कृत भाषा में ही लिखा गया है. संस्कृत साहित्य के बोध के लिये संस्कृत व्याकरण का ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है क्योंकि- व्याकरणात् पदसिद्धि पदसिद्धरर्थनिर्णयो भवति. (व्याकरण से पदसिद्धि व पदसिद्धि से अर्थ का निर्णय होता है) अर्थात तत्त्वज्ञानं तत्त्वज्ञानात परं श्रेयः तत्त्वज्ञान एवं तत्त्वज्ञान से परमकल्याण होता है). पाणिनि से लेकर अब तक जितने भी व्याकरण हमें उपलब्ध हैं उनमें हैम व्याकरण का अपना एक अलग अस्तित्व है, जो अन्यत्र दुर्लभ है.
इस ग्रंथ के अतिरिक्त इन्होंने स्तोत्र, इतिहास, योग तथा न्याय आदि विषयों के अनेक ग्रंथों की रचना की. अपनी साधना में अहर्निश लीन हेमचन्द्राचार्यजी ने यत्र-तत्र विहार करते हुए जनसमूह को धार्मिक भावनाओं से अभिप्रेरित कर उनके अज्ञान अन्धकार को दूर किया. इतना ही नहीं गुजरात में आज भी लोगों में जीवों के प्रति जो दया व प्रेम है उसका श्रेय आचार्यश्री को ही जाता है.
कलिकाल सर्वज्ञ हेमचंद्राचार्यजी ने सिद्धराज, कुमारपाल जैसे राजाओं को प्रतिबोधित कर अनेक नर-नारियों को भगवान वीतराग के भक्त व जिनशासन के अनुरागी बनाकर ८४ वर्ष का दीर्घायुष्य पूर्णकर सिद्ध स्वरूप परमात्मा के ध्यान में निमग्न हो वि.सं.१२२९ में अपने पार्थिव शरीर को त्याग दिया. __ हेमचन्द्राचार्यजी एक महान योगी. साहित्यकार और जिनशासन के महान् प्रभावक थे. वे साक्षात भगवती सरस्वती के वरदपुत्र तथा कलिकाल सर्वज्ञ थे.
उद्गार
A wonderful temple and Museum. Your Library programme looks quite interesting and immensely powerful. I was quite impressed ....
Ronak Shah
Boston. U.S.A. I never saw such a large collection of Jain manuscripts.
J. S. Chowdhary
___39, Pologround, Udaipur. श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र का दर्शन किया. ऐसी बहुमूल्य एवं प्राचीन संस्कृति की अद्भुत वस्तुएँ देखने को नहीं मिलती. यहाँ अवलोकनकर दिल को सुखद अनुभूति हुई.
... जयसिंह बोहरा राजेन्द्र एण्ड कं., ५७, सियागंज, इन्दौर.
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