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हिन्दी अनुवाद :
इस प्रकार केवली द्वारा कहे जाने पर उनकी बात स्वीकार कर तथा बहुमान पूर्वक मानकर तीन बार प्रदक्षिणा कर फिर से उन्हें वन्दन किया। गाहा :
तत्तो उप्पइऊणं समागओ एत्थ तुह समीवम्मि ।
जं तं तुमए पुटुं तं सव्वं साहियं एयं ।।७३।। संस्कृत छाया :
तत उत्पत्य समागतोऽत्र तव समीपे ।
यत् तस्वया पृष्टं तत् सर्व कथितमेतद् ।।७३।। गुजराती अनुवाद :___ त्याथी उड़ीने हुँ तारी पासे आव्यों छु ने ते जे मने पूछयुं तेनो खुलासो आप्यो । हिन्दी अनुवाद :
वहाँ से उड़कर मैं तेरे पास आया हूँ। तो तुमने जो मुझसे पूछा उसका खुलासा मैंने कर दिया। गाहा :
भो चित्तवेग! संपइ कायव्वं जं मए तमाइससु ।
तो भणइ चित्तवेगो सुर-वर! निसुणेसु मह वयणं ।।७४।। संस्कृत छाया :
भोचित्रवेग! सम्प्रति कर्तव्यं यन्मया तदादिश ।
ततो भणति चित्रवेगः सुरवर! निःशृणु मम वचनम् ।।७४।। गुजराती अनुवाद :
हे चित्रवेग! हवे मारा लायक जे काम होय ते मने कहे, त्यारे चित्रवेगे कहयुं हे देव तूं मारी वात सांभल। हिन्दी अनुवाद :
हे चित्रवेग! अब मेरे योग्य कोई कार्य हो तो मुझे कहो। तब चित्रवेग ने कहा हे देव! आप मेरी बात सुनिए।