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________________ जैन परम्परा के परिप्रेक्ष्य में विवाह पद्धति एवं वर्ण व्यवस्था प्रो० कमलेश कुमार जैन सामान्य रूप से विवाह एक सामाजिक बन्धन है, किन्तु इस बन्धन को स्थायी बनाने हेतु हम उसे धार्मिक रूप दे देते हैं। धर्म की एक विशेषता यह है कि उसमें श्रद्धा अधिक और तर्क कम होते हैं। अत: तर्क-कुतर्क से बचने के लिये विवाह को धार्मिक स्वरूप प्रदान किया गया है। यदि इसे धार्मिक स्वरूप न दें तो अव्यवस्था फैल जायेगी और हम सभी का जीवन पशुवत् हो जायेगा। परस्पर में न कोई पिता होगा और न कोई पुत्र न कोई माता होगी और न कोई बेटा। हम रात-दिन भोगों में तो संलग्न रहेंगे, किन्तु हमारी परस्पर में कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। समाज का अर्थ ही है एक दूसरे के सुख-दुःख में सहभागी बनना। हमारा प्रत्येक कार्य दूसरे को प्रभावित करता है, फिर चाहे वह अच्छा हो अथवा बुरा। इसलिये सामाजिक दृष्टि से अच्छे कार्यों के लिये प्रोत्साहित किया जाता है और खोटे कार्यों से विरत रहने का संदेश दिया जाता है। चारित्रमोहनीय कर्म के वशीभूत पुरुष का स्त्री के प्रति एवं स्त्री का पुरुष के प्रति जो राग है उसकी पूर्ति हेतु विवाह किया जाता है। देव, शास्त्र और गुरु की साक्षी तथा माता-पिता एवं सगे-सम्बन्धियों की स्वीकृतिपूर्वक जो विवाह किया जाता है, वह धर्म और कुल की वृद्धि का कारण बनता है। चारित्रमोहनीय कर्म के कारण हम अनादिकाल से भोगों अथवा पञ्चेन्द्रियों के विषय में आकण्ठ डूबे हुये हैं। इन विषय-वासनाओं से एकदम विरत होना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। कितने ही महापुरुष विवाह-बन्धन में बंधे बिना ही मुक्ति को प्राप्त हो गये हैं, किन्तु यह कथन वर्तमान पर्याय की अपेक्षा है। उन्हीं महापुरुषों की पिछली पर्यायों पर विचार करें तो वे भी उसी संसार-सागर में निमग्न रहे हैं। बाद में उन्होंने अपनी वर्तमान पर्याय से मुक्ति प्राप्त की हैपशु और मनुष्य में भेद करते हुये नीतिकारों ने लिखा है कि आहार निद्रा भय मैथुनञ्च सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम् । धर्मो हि तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीना:पशुभिः समानाः।। अर्थात् आहार, निद्रा, भय और मैथुन - ये चार संज्ञायें प्रत्येक जीव में समान रूप से पाई जाती हैं। यहाँ तक कि एकेन्द्रिय वनस्पति में भी ये चार संज्ञायें पाई जाती
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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