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8 : श्रमण, वर्ष 66, अंक 4, अक्टूबर-दिसम्बर, 2015
है। फिर शेष मानव के एक-एक अंग का छेदन-भेदन। इस आगम पाठ के दो अर्थ संभावित हैं
१. हिंसक जीव अन्य प्राणियों के पैर के अधोवती भाग से लेकर शीर्ष तक के सभी भागों का छेदन - भेदन करता रहता है।
२. पूर्व में किए गए हिंसा - पूर्ण कार्यों का फल जीवों को उत्तरकाल में यह मिलता है कि उसके पैर के अधोभाग से शीर्ष पर्यन्त अंगों का छेदन- भेदन इसे सहना पड़ता है।
यहाँ 'अंध' शब्द को समझ लें, यह संस्कृत शब्द 'अधस्' (निचला भाग) का प्राकृत रूप है। जैसे-वक्र को वंक, दर्शन को दंसण, त्र्यस्त्र को तंस, पृथक् को पिंघ, पुंघ यानि अनुस्वार आगम कर दिया है। ऐसे ही 'अधस्' शब्द में अनुस्वार आगम करके 'अंध' शब्द बनता है। सम्पूर्ण पाठ ही इस तथ्य को प्रमाणित कर रहा है। यदि प्रचलित अर्थ के अनुसार स्थावरों की पीड़ा-अंधे गूंगों की तरह मान लें तो फिर श्रावकों को पंचेंन्द्रिय जीवों को मारने का पाप लगेगा। जब आगमों की हर व्याख्या साधारण जीवों को प्रत्येक की तुलना में बहुत निम्न स्तर का सिद्ध कर रही है तो क्या यह सब आगम-पाठों का दुरुपयोग नहीं है जो दोनों की चेतना को बराबर प्रमाणित किया जा रहा है।
एक प्रश्न मन में कौंध सकता है कि जैन- परम्परा में अनन्तकाय के भक्षण के निषेध का इतिहास तो पुराना है पर यह क्यों शुरू हुआ ? इसका समाधान यह है कि सनातन धर्म के ऋषि प्रायः कन्दमूल का भक्षण करते थे, उनके विरोध में गोशालक ने इनका सेवन वर्जित किया। जमीन खोदना, बैलों को नाथ डालना, हल चलाना, यहाँ तक कि जमीन से निकलने वाले कंद-मूल तक को भी अभक्ष्य घोषित कर दिया और उसके इस प्रचार का जैन धर्मावलम्बियों पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि यह सोचा जाने लगा कि जब गोशालक के अनुयायी भी जमीकंद नहीं खाते तो फिर हमें तो और भी त्याग रखना चाहिए । फिर क्रमशः यह भोजन परम्परा जैनत्व का अभिन्न अंग बन गई। हमारे धर्म का मौलिक रूप न होते हुए भी मौलिक से ज्यादा मान्यता मिल गई। यह एक प्रतिक्रिया जन्य (Reactionary) अपनाया हुआ रिवाज है न कि आगमिक विधि निषेध का स्पष्ट परिणाम । वस्तुतः हिंसा और अहिंसा को नापने के लिए संख्या बहुत ही कमजोर तथा अप्रामाणिक मापदण्ड है; अहिंसा के स्वरूप निर्धारण में तीन करण, तीन योग, क्रूरता, दयालुता, म्रियमाण जीव की इन्द्रिय शक्ति, पर्याप्ति, प्राण, संकल्प पूर्वकता, आरम्भ - मात्र जन्यता, सापराधकतानिरपराधकता, परिमाण में हिंसा की वृद्धि और कमी, सैकड़ों पहलू ऐसे होते हैं जो