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________________ गुजराती अनुवाद : मणी द्वारा सिंचायेला निर्मण जलने श्रीकान्ता ऊपर छांटयुं त्यारे तेणी सुखपूर्वक सूई ने उठी होय तेस उधी थई। हिन्दी अनुवाद : मणि द्वारा सिंचित निर्मल जल को जब धनदेव ने श्रीकान्ता के ऊपर छिड़का तब वह जैसे सुखपूर्वक सो कर उठी हो, वैसे खड़ी हो गयी। अविय। तीए तं देह-गयं सप्प-विसं मणि-जलेण संसित्तं । सुक्क ज्झाणाभिहयं नटुं कम्मंव मोहणियं ।।१९२।। संस्कृत छाया : अपि च. तस्यास्तं देहगतं सर्प-विषं मणिजलेन संसिक्तम् । शुक्लध्यानाभिहतं नष्टं कर्मेव मोहनीयम् ।।१९२।। गुजराती अनुवाद : अने तेणीनां शरीर मा रहेलुं झेर मणीनां पाणी छांटवा थी शुक्लध्यान थी मोहनीय कर्म नष्ट थाय तेम नष्ट थयु। हिन्दी अनुवाद : और उसके शरीर में रहा हुआ जहर मणि के पानी के छिड़कने से ऐसे नष्ट हो गया जैसे शुक्लध्यान आ जाने पर मोहनीय कर्म नष्ट हो जाता है। गाहा : तं दटुं सिरिदत्तो सागर-सिट्ठी य हरिसिया दोवि । पिसुणंति तुज्झ एसा दिना धणदेव! सिरिकंता ।।१९३।। संस्कृत छाया : तां दृष्ट्वा श्रीदत्तः सागरश्रेष्ठी च हर्षितौ द्वावपि । पिशुनयति तुभ्यमेषा दत्ता धनदेव! श्रीकान्ता ।।१९३।। गुजराती अनुवाद : ते जोईने श्रीदत्त अने सागर शेठ घंने खुश थया ने कहयु के धनदेव कन्या श्रीकान्ता तने आपी।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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