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________________ संस्कृत छाया : दे! (हे) पश्यामस्तावच्च तव भगिनीं तेनैवमुल्लपिते । नीतस्तस्याः समीपे धनदेवो भणति निजपुरुषम् ।।१८९।। गुजराती अनुवाद : पहेला मने तारी बहेन ने जोवा छे, आवु धनदेवे कहयु, त्यारे श्रीदत्त धनदेव ने पोतानी बहेन पासे लई गयो, ओ पछी त्यारे धनदेवे पोताना माणशने कडं. हिन्दी अनुवाद : धनदेव ने कहा कि पहले मुझे तुम्हारी बहन को देखना है। तब श्रीदत्त धनदेव को अपनी बहन के पास ले गया और तब धनदेव ने अपने आदमियों से कहा। गाहा : तं सुप्पइट्ठ-दिन्नं आणेसु मणिति ताहे सो पुरिसो। घित्तुं लहु दिव्य-मणिं समागओ तस्स पासम्मि ।।१९०।। संस्कृत छाया : तं सप्रतिष्ठ-दत्तमानय मणि-मिति तदा स पुरुषः । गृहीत्वा लघु दिव्यमणिं समागतस्तस्य पाः ।।१९०।। गुजराती अनुवाद : सुप्रतिष्ठ र आपेल ते मणी लई आवो. त्यारे ते माणस ते मणी लई आव्यो। हिन्दी अनुवाद : सुप्रतिष्ठ की वह दी हुई मणि ले आओ। तब वह आदमी वह मणि ले आया। गाहा: विमल-सलिलेण सित्तो दिव्व-मणी ताहे तेण नीरेण । अन्मोक्खिया सलील समुट्ठिआ सुह-पसुत्तव्य ।।१९१।। संस्कृत छाया : विमलसलिलेन सिक्तो दिव्यमणिस्तदा तेन नीरेण । अभ्युक्षिता सलिलं समुत्थिता सुख-प्रसुप्तेव ।।१९१।।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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