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________________ आगम्म माउ-मूले रुयमाणी भणइ वेयण-परट्ठा । अम्मो! खद्धा खद्धा अहयं गुरु-कसिण-सप्पेण ।।१७१।। संस्कृत छाया : तत्र च व्याक्षिप्तमनाः कृष्णभुजङ्गेन बाहुमूले। दष्टा, दृष्ट्वाऽहिमतीवभय-वेपनशील-शरीरा ।।१७०।। आगम्य मातृमूले रुदन्ती भणति वेदनपरार्था । अम्बे! खादिता-खादिताऽहं गुरु-कृष्णसर्पण ।।१७१।। युग्मम् ।। गुजराती अनुवाद : त्यां एक काळो सांप तेणीने (खांधा ऊपर) दंश आप्यो. ते जोईने कांपता शरीर वाळी ते रोती रोती दर्द नी मारी मां पासे आवीने बोलवा लागी मने विशालकाय काळा सांपे डंस दीयो। हिन्दी अनुवाद : तभी वहाँ एक काला सांप उसे (बांह के ऊपर) डंस लिया। यह देखकर कांपती शरीर व दर्द से कराहने वाली वह रोती रोती अपने मां के पास आई और बोली मुझे विशालकाय काले सांप ने काट लिया है। गाहा : पेलव-सत्तत्तणओ उक्कडयाए य विस-वियारस्स । वेयणाए पभूयत्ता सभयत्ता इत्यि-भावस्स ।।१७२।। संस्कृत छाया : पेलवशवत्वात् उत्कटतया च विषविकारस्य । वेदनायाः प्रभूतत्वात् सभयत्वात् खीभावस्य ।।१७२।। गुजराती अनुवाद : अत्यन्त उत्कट झेर ने कारणे खूप वेदना थवाथी तेमां पाछो स्त्रीनो स्वभाव अने समय होवा थी. हिन्दी अनुवाद : अत्यन्त तीव्र जहर के कारण अधिक कष्ट होने से और उसमें भी स्त्री स्वभाव से सुकुमार और डरपोक होने से।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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