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संस्कृत छाया :
एवं विचिन्तयन् कृत्वा भोजनं तु धनदेवः । श्रीदसेन वितीर्णे ताम्बूल - विलेपनादौ । । १६७ ।। गेहाद् निःसृतो गत्वा निजवासस्थाने ।
श्रीकान्ता-हत-हृदयः प्रसुप्तः प्रवर-शयनीये ।। १६८ ।। युग्मम् ।।
गुजराती अनुवाद :
आम विचार करतां धनदेव ने भोजन कर्या पछी श्रीदत्ते पान-बीड़ अने अत्तर आप्युं. पछी ते घरमांथी नीकळी ने पोताना घरे, श्रीकान्ताओ हरीलीधुं छे हृदय जेनु, ओवो ते धनदेव पोतानी पथारीमां सूतो ।
हिन्दी अनुवाद :
यह विचार करता हुआ धनदेव को भोजन करने के बाद श्रीदत्त ने उसे पान-बीड़ा और सुगन्धित इत्र भेंट की। बाद में वहाँ से निकलकर अपने घर आकर श्रीकान्ता ने जिसका दिल हर लिया है, ऐसा धनदेव अपने बिस्तरे में सो गया।
गाहा :
एत्तो य मयण - वसगा सिरिकंता रणरणेण अभिभूया । गंतूण गिहुज्जाणे पासुत्ता कयलि - गेहम्मि ।। १६९ ।।
संस्कृत छाया :
इतश्च मदनवशगा श्रीकान्ता रणरणेनाऽभिभूता । गत्वा गृहोद्याने प्रसुप्ता कदलि गेहे ।। १६९ ।।
गुजराती अनुवाद :
आचाजु श्रीकान्ता काम ने वश थयेली ओवी धनदेव तरफ उत्कंठित थयेली पोताना घरना बगीचामां केळानी वाड़ी मां सुई गयी ।
हिन्दी अनुवाद :
दूसरी तरफ काम के वशीभूत तथा धनदेव की तरफ आकर्षित हुई श्रीकान्ता अपने घर के बगीचे की केले की वाड़ी में सो गयी।
गाहा :
तत्थ य वक्खित्त- मणा कसिण- भुयंगेण बाहु - मूलम्मि । दट्ठा दट्ठूण अहिं अईव भय- वेविर- सरीरा ।। १७० ।।