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________________ संस्कृत छाया : कथं भवेत् मम एषा? मार्गयामि स्वयमप्यथवाऽन्येन? । यदि दास्यन्ति न, माम विमार्गिता भवेद् लघुत्वम् ।।१६५ गुजराती अनुवाद :- हवे हुं जो स्वयं अणीने मांगु के बीजा द्वारा मांगु पण जो मने न मळे के न आपे तो माळं लाघव पण थाय। हिन्दी अनुवाद : अब मैं इसे मांगू या दूसरे द्वारा मंगवायूँ किन्तु यदि यह मुझे न मिले। • या वह मुझे न दे तो मेरा लाघव (छोटापन) होगा। गाहा : अहवा समाण-जाई धणवंतो वसण-वज्जिओ तह य । एसावि जोव्वण-त्या तम्हा दाहिति मह एए ।।१६६।। संस्कृत छाया : अथवा समानजाति-धनवान् व्यसन-वर्जितस्तथा च । एषाऽपि यौवनस्था तस्माद् दास्यन्ति ममैते ।।१६६।। गुजराती अनुवाद : अथवा तो समान जाति, धन, व्यसन रहित पणुं तथा यौवन आ चधुं सरखे सरखं होवा थी ते मने आपशे। हिन्दी अनुवाद : अथवा समान जाति, धन, तथा व्यसन रहित (होने से) तथा यौवन में बराबर-बराबर होने से वह मुझे दे सकता है। गाहा : एवं विचिंतयंतो काऊणं भोयणं तु धणदेवो । सिरिदत्तेण विइन्ने तंबोल-विलेवणाइम्मि ।।१६७।। गेहाओ नीहरिओ गंतूणं नियय-वास-ठाणम्मि । सिरिकंता-हय-हियओ पासुत्तो पवर-सयणीए ।।१६८।।
SR No.525094
Book TitleSramana 2015 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
PublisherParshvanath Vidhyashram Varanasi
Publication Year2015
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Sramana, & India
File Size15 MB
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